
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बुधवार को सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात करने राजधानी लखनऊ पहुंचेंगे। दोपहर करीब दो बजे वह एयरपोर्ट पहुंचेंगे और फिर वहां से सीधे विक्रमादित्य मार्ग स्थित सपा के प्रदेश कार्यालय के लिए रवाना होंगे। वह सर्वोच्च न्यायालय से दिल्ली सरकार को ट्रांसफर-पोस्टिंग के मिले अधिकार को केंद्र सरकार द्वारा अध्यादेश लाकर खत्म किए जाने के खिलाफ विपक्षी दलों का समर्थन मांगने में जुटे हुए हैं।
आम आदमी पार्टी (आप) के निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष सभाजीत सिंह ने बताया कि एयरपोर्ट पर कार्यकर्ताओं केजरीवाल का भव्य स्वागत करेंगे। अभी तक उनका पार्टी के प्रदेश कार्यालय आने का कोई कार्यक्रम नहीं है। वह अखिलेश से मुलाकात कर सीधे दिल्ली वापस लौटेंगे।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ समर्थन जुटाने की आप की कोशिशों के बीच बुधवार को यहां समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से मुलाकात करेंगे। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान केजरीवाल के साथ बैठक में शामिल होंगे। सीएम केजरीवाल ने ट्वीट किया, “मैं और भगवंत मान साहब लखनऊ में अखिलेश यादव जी से मिलेंगे और केंद्र सरकार के असंवैधानिक अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली के लोगों के अधिकारों के लिए समर्थन मांगेंगे।”
विपक्षी दलों से संपर्क
आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अध्यादेश के खिलाफ समर्थन हासिल करने के लिए गैर-बीजेपी दलों के नेताओं से संपर्क कर रहे हैं ताकि संसद में विधेयक लाए जाने पर इसे बदलने की केंद्र की कोशिश विफल हो जाए।
ये है मामला और प्लानिंग
केंद्र ने 19 मई को दिल्ली में ग्रुप-ए के अधिकारियों के तबादले और पोस्टिंग के लिए एक प्राधिकरण बनाने के लिए अध्यादेश जारी किया था, जिसे आप सरकार ने सेवाओं के नियंत्रण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ धोखा बताया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर दिल्ली में सेवाओं का नियंत्रण निर्वाचित सरकार को सौंपे जाने के एक सप्ताह बाद यह अध्यादेश आया। शीर्ष अदालत के 11 मई के फैसले से पहले दिल्ली सरकार के सभी अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग के मामले लेफ्टिनेंट गवर्नर के कार्यकारी नियंत्रण में थे। केजरीवाल चाहते हैं कि केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश को राज्यसभा में निरस्त करवा दिया जाए। यदि ऐसा होता है तो इससे यह अध्यादेश को कानून का रूप नहीं ले पाएगा। जिसके बाद दिल्ली के सभी बड़े फैसले वह खुद ले सकते हैं।