
लगातार चढ़ते पारे ने प्रदेश की बिजली व्यवस्था अस्त-व्यस्त कर दी है। मांग के मुकाबले उपलब्धता कम होने की वजह से शहरों से लेकर गांवों तक बेतहाशा बिजली कटौती हो रही है। भीषण गर्मी में कहीं घोषित तो कहीं अघोषित कटौती ने लोगों को बेहाल कर रखा है। हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राजधानी लखनऊ में ही तमाम इलाकों में कई-कई घंटे बिजली गुल हो रही है। अतिरिक्त बिजली का इंतजाम करने के बावजूद पावर कॉर्पोरेशन बिजली आपूर्ति व्यवस्था पटरी पर रखने में नाकाम साबित हो रहा है।
प्रदेश में बिजली की मांग लगातार 25,000 मेगावाट के आसपास या उससे ज्यादा बनी हुई है जबकि सभी स्रोतों से बिजली लेने के बाद कुल उपलब्धता 23,000 से 24,000 मेगावाट के आसपास है। गांवों में बमुश्किल आठ-दस ही घंटे आपूर्ति हो पा रही है जबकि दावा 15-16 घंटे का किया जा रहा है। नगर पंचायतों, तहसील मुख्यालयों व बुंदेलखंड का भी हाल बुरा है। कहीं भी तय रोस्टर के अनुसार बिजली नहीं मिल रही है। मंडल व जिला मुख्यालयों पर भी रोस्टर के अनुसार बिजली आपूर्ति नहीं हो पा रही है।
राज्य के बिजलीघरों से लगभग 4900 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है जबकि करीब 6000 मेगावाट बिजली निजी उत्पादकों से मिल रही है। कें द्र से 12,000-13,000 मेगावाट आयात की जा रही है। द्विपक्षीय समझौते व बैंकिंग के जरिये 1200-1700 मेगावाट, एनर्जी एक्सचेंज से 500-1,000 मेगावाट बिजली ली जा रही है। इसके बाद भी मांग और उपलब्धता में 1,000-1,500 मेगावाट का अंतर बना हुआ है। खास तौर पर रात में मांग में काफी इजाफा हो रहा है और आपूर्ति व्यवस्था पटरी पर रखना बेहद मुश्किल हो रहा है।
आपूर्ति का रोस्टर गड़बड़ाया
स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर (एसएलडीसी) की रिपोर्ट के मुताबिक गांवों को औसतन 15:25 घंटे बिजली आपूर्ति हो रही है जबकि शिड्यूल 18 घंटे हैं। इसी तरह नगर पंचायतों व तहसीलों को औसतन 20 घंटे बिजली मिल रही है जबकि शिड्यूल 21:30 घंटे का है।
बुंदेलखंड का शिड्यूल 20 घंटे है और औसतन 18 घंटे की आपूर्ति हो पा रही है। अभियंताओं की मानें तो बिजली की कमी के साथ-साथ सिस्टम ओवरलोड होने, लोकल फाल्ट तथा अन्य तकनीकी वजहों से भी दिक्कत आ रही है। गर्मी बढ़ने के साथ ही एकाएक फाल्ट भी बढ़ गए हैं।
कोयले की किल्लत भी बरकरार
प्रदेश में चल रहे जबर्दस्त बिजली संकट के बीच कोयले की किल्लत भी बनी हुई है। बिजलीघरों को रोजाना की जरूरत से कम कोयले की आपूर्ति हो रही है। अनपरा में तीन दिन, ओबरा में पांच दिन तथा हरदुआगंज व पारीछा में महज दो-दो दिन के कोयले का भंडार शेष रह गया है।