गुर्दा, लीवर और हार्ट फेलियर रोगियों की संख्या हर साल बढ़ने और पर्याप्त मात्रा में अंगदान न होने की वजह से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली अंग व्यापार का केंद्र बनती जा रही है

गुर्दा, लीवर और हार्ट फेलियर रोगियों की संख्या हर साल बढ़ने और पर्याप्त मात्रा में अंगदान न होने की वजह से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली अंग व्यापार का केंद्र बनती जा रही है। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि बीते छह वर्षों के दौरान तीन बार दिल्ली पुलिस को एक नया किडनी रैकेट पकड़ने में कामयाबी मिली है। 

इन तीनों ही मामलों में बड़ा निजी अस्पताल, वहां के कर्मचारी, डॉक्टर और बाहरी दलालों के अलावा पीड़ित निम्न वर्गीय परिवार पड़ोसी राज्यों से हैं। इसके पीछे एक कारण प्रत्यारोपण की अधिक मांग और अंगदान कम होना माना जा रहा है, तो वहीं मानव अंग प्रतिरोपण अधिनियम 1994 कानून का प्रावधान और सख्त बनाने की जरूरत मान रहे हैं। 

दरअसल, दो दिन पहले दिल्ली पुलिस ने किडनी रैकेट का खुलासा किया था, जिसमें 10 लोग पकड़े गए थे। हालांकि, दिल्ली में इससे पहले साल 2016 और 2019 में किडनी रैकेट का खुलासा हो चुका है। इन मामलों में दिल्ली पुलिस 30 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है। इनमें दिल्ली के बड़े निजी अस्पतालों से चार डॉक्टर शामिल हैं। 

पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि इन मामलों में उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब की भूमिका रही है, लेकिन सभी प्रत्यारोपण दिल्ली के बड़े प्राइवेट अस्पतालों में ही हुए हैं। उन्होंने कहा, निजी अस्पताल वकील और अधिकारियों तक पहुंच रखते हैं। हर बार अस्पताल इसलिए बच जाते हैं कि आरोपी डॉक्टर वहां स्थायी कर्मचारी नहीं होते और उनके सहायक कर्मचारी व्यक्तिगत तौर पर नियुक्त होते हैं। 

एम्स के एक अन्य डॉक्टर ने कहा कि यह व्यापार तब तक जारी रहेगा, जब तक अंगों की मांग और आपूर्ति के बीच की खाई को पाट नहीं दिया जाता। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, प्रत्यारोपण के लिए मानव अंगों की मांग और आपूर्ति के बीच एक बड़ा अंतर है। अगर आंकड़ों के जरिए यह स्थिति समझें तो सालाना दो लाख मरीजों को किडनी प्रत्यारोपण कराने की जरूरत है, लेकिन साल 2017 को छोड़ किसी भी वर्ष में किडनी प्रत्यारोपण तीन हजार से अधिक नहीं हुआ है। इसी तरह 30 हजार लीवर की मांग के मुकाबले केवल 1500 और 50 हजार हृदय की मांग के मुकाबले देश में केवल 15 उपलब्ध हैं। अंगदान पर काम करने वाले चेन्नई के मोहन फाउंडेशन के मुताबिक, हर साल देश में केवल तीन फीसदी मरीजों का ही प्रत्यारोपण होता है। 

तीन साल 250 ब्रेन डेड, अंगदान सिर्फ 10
एम्स के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में 10 लाख लोगों में लगभग 1500 को क्रोनिक किडनी रोग है। साथ ही, प्रति 10 लाख लोगों जनसंख्या पर लगभग 350 से 400 मरीज किडनी फेलियर हैं। इसी तरह साल 2018 के दौरान इंडियन जर्नल ऑफ एनेस्थीसिया में प्रकाशित एम्स के अध्ययन में पता चला है कि उनके ट्रॉमा सेंटर में साल 2014 से 2017 के बीच 205 मरीज ब्रेन डेड घोषित हुए, लेकिन इनमें से केवल 10 के परिवारों ने अंगदान किया। 

जिन्हें चाहिए अंग, उनकी रजिस्ट्री तक नहीं ः भारत में किडनी, लीवर और हार्ट फेलियर के मामले काफी तेजी से हर साल बढ़ रहे हैं। इसकी वजह से प्रत्यारोपण की मांग भी बढ़ी है, लेकिन अंगों की प्रतीक्षा कर रहे रोगियों की राष्ट्रीय रजिस्ट्री नहीं है। अगर मौजूदा स्थिति के बारे में पता किया जाए तो सरकार के पास सिर्फ एक अनुमान है कि तीन से साढ़े तीन लाख रोगियों को किडनी, लीवर या फिर हृदय प्रत्यारोपण की आवश्यकता है।

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