
ऊर्दू के मशहूर साहित्यकार गोपी चंद नारंग (Gopi Chand Narang) का निधन हो गया है। बुधवार को अमेरिका के उत्तरी कैरोलिना के चार्लोट में उन्होंने अंतिम सांस ली। यह जानकारी उनके बेटे ने दी। 91 वर्षीय नारंग के परिवार में उनकी पत्नी मनोरमा नारंग और उनके बेटे अरुण नारंग और तरुण नारंग और पोते-पोतियां हैं। उनका जन्म 1930 में पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर स्थित बलूचिस्तान के छोटे से शहर दुक्की में हुआ था। 1958 में दिल्ली विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद प्रोफेसर नारंग ने दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कालेज में एक अकादमिक पद ग्रहण किया।
1995 में मिला था साहित्य अकादमी
प्रोफेसर नारंग को 2004 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया, 1995 में साहित्य अकादमी और गालिब पुरस्कार से अलंकृत किया गया। पाकिस्तान के सितारा-ए इम्तियाज पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से उन्हें नवाजा जा चुका है। प्रोफेसर गोपी चंद नारंग ने 57 किताबों को रचना की है। प्रोफेसर नारंग ने हाल के वर्षों में मीर तकी मीर, गालिब और उर्दू गजल पर अपने प्रमुख कार्यों के अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किए।
जानिए गुलजार सहित कई लेखकों ने उनके लिए कहा है
प्रतिष्ठित उपन्यासकार और लघु कथाकार इंतिजार हुसैन ने एक बार कहा था,’जब वह पाकिस्तान आते हैं तो प्रोफेसर गोपी चंद नारंग एक टुकड़े में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह मैं किसी और के बारे में नहीं कह सकता। जब वह मंच पर आते हैं, तो हमें लगता है कि भारत अपनी संपूर्णता में हमें संबोधित कर रहे हैं। प्रमुख हिंदी लेखक कमलेश्वर ने उर्दू भाषा में प्रोफेसर नारंग के साहित्यिक योगदान पर उल्लेख किया था है कि प्रत्येक भारतीय भाषा को एक गोपी चंद नारंग की आवश्यकता होती है।