
जिम्बाब्वे सरकार ने 22 कैरेट सोने का सिक्का जारी किया है। जिम्बाब्वे में मुद्रास्फीति (Inflation) की दर जून महीने में दोगुनी से अधिक 192 फीसदी हो गई थी। जिससे स्थानीय मुद्रा काफी कमजोर हो गई और अर्थव्यवस्था (Economy) को पुनर्जीवित करने के लिए 25 जुलाई से सिक्कों की बिक्री शुरू की गई है।
अफ्रीकी देश जिम्बाब्वे (Zimbabwe) में भी श्रीलंका की तरह विदेशी मुद्रा सकंट (Forex crisis) पैदा हो गया है। देश की अर्थव्यवस्था (Economy) की हालत लगातार खराब होती जा रही है। महंगाई बेकाबू हो गई है और डॉलर के मुकाबले स्थानीय मुद्रा जिम्बाब्वियन डॉलर (Zimbabwean Dollar) गिरावट के नए रिकॉर्ड बना रही है। इससे निपटने के लिए सरकार ने सोने का सिक्का लॉन्च किया है। सोने के इन सिक्कों को “मोसी-ओ-तुन्या” (Mosi-oa-tunya) नाम दिया गया है। 22 कैरेट सोने के इन सिक्कों पर विक्टोरिया फॉल्स की तस्वीर बनी हुई है।
जून में मुद्रास्फीति 200 के करीब
जिम्बाब्वे में मुद्रास्फीति (Inflation) की दर जून महीने में दोगुनी से अधिक 192 फीसदी हो गई थी। जिससे स्थानीय मुद्रा (Zimbabwean Dollar) की स्थिति काफी कमजोर हो गई और अर्थव्यवस्था (Economy) को पुनर्जीवित करने के राष्ट्रपति इमर्सन मनांगाग्वा (President Emmerson Mnangagwa) के प्रयासों पर पानी फेर दिया। 25 जुलाई से इन सिक्कों की बिक्री शुरू हो गई है। 25 जुलाई को 2,000 सिक्के जारी किए गए थे।
सेंट्रल बैंक के गवर्नर जॉन मंगुड्या (Central Bank Governor John Mangudya) ने कहा कि इन सिक्कों नकदी में बदला जा सकता है और इससे स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबार किया जा सकता है। मंगुड्या ने कहा कि स्थानीय मुद्रा, अमेरिकी डॉलर और अन्य विदेशी मुद्राओं में सोने की मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कीमत और उत्पादन लागत के आधार पर सोने के सिक्के बिक्री के लिए उपलब्ध हैं।
एक सोने का सिक्का 1,823.80 डॉलर के बराबर
स्थानीय एजेंटों ने सोने के सिक्के को तत्काल आधार पर 1,823.80 डॉलर प्रति सोने के सिक्के के शुरुआती मूल्य पर बेचना शुरू किया है। लेकिन राजधानी हरारे में ग्रेग चिगोम्बे जैसे कुछ लोगों के लिए यह बहुत महंगा है। ग्रेग चिगोम्बे ने कहा कि हम इसे भी वहन (Afford) नहीं कर सकते। 1800 अमेरिकी डॉलर बहुत अधिक है। चिगोम्बे ने कहा कि “मेरा मानना है कि अधिकांश लोगों के लिए इन सिक्कों को प्राप्त करना बहुत मुश्किल होगा।”
आम लोग इस पहल का हिस्सा नहीं बन सकेंगे
जानकारों का मानना है कि आम लोग इस पहल का हिस्सा नहीं बन सकेंगे, क्योंकि इनकी कीमत उनके पहुंच से बाहर है। जिम्बाब्वे की आज की स्थिति देख कई लोगों को 2000 के दशक के वर्ष याद आते हैं। तब रॉबर्ट मुगाबे राष्ट्रपति हुआ करते थे।
2008 में भी हुआ था जिम्बाब्वे का बुरा हाल
साल 2008 में जब पूरा विश्व आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा था। उस समय जिम्बाब्वे की स्थिति और ज्यादा ही खराब हो गई थी। जिम्बाब्वे में महंगाई इस कदर बेकाबू हो गई थी कि वहां के सेंट्रल बैंक को 100 लाख करोड़ डॉलर का बैंकनोट जारी करना पड़ गया था। दुनिया में इतनी बड़ी रकम का नोट अब तक किसी भी देश ने नहीं छपा है। गंभीर आर्थिक संकट के कारण जिम्बाब्वे का विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त हो गया था और उसकी करेंसी जिम्बाब्वियन डॉलर की वैल्यू रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गई थी। 2015 में इस नोट का चलन बंद हो गया था और अमेरिकी डॉलर का इस्तेमाल शुरू हो गया था। इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे को 2017 में पद छोड़ना पड़ा था।