पंजाब में गिरते जल स्तर से सिर्फ पंजाब ही नहीं केंद्र सरकार भी चिंता में है। भारत सरकार की यह चिंता केंद्रीय जलशक्ति राज्य मंत्री विशेश्वर टुडु के बयान से भी जाहिर होती है। मंत्री ने संसद में बताया कि पंजाब के 23 जिलों में से 20 में भूमिगत जल स्तर बुरी तरह से गिर गया है।
भूजल की कमी के कारण राज्य मरुस्थलीकरण की तरफ बढ़ रहा है, जिसके कारण उसे अगले डेढ़ दशक में एक भयंकर स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि पंजाब को धान के चक्कर से निकालने की सख्त जरूरत है वर्ना सूबे में पानी नहीं मिलेगा।
सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि पंजाब का सिर्फ 60 प्रतिशत भूजल इस्तेमाल के लायक रह गया है। मात्रा ही नहीं, बल्कि पानी की गुणवत्ता के मामले में भी पंजाब भयंकर जल संकट का सामना कर रहा है। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब के 23 जिलों में से 16 फ्लोराइड-युक्त, 19 नाइट्रेट-युक्त, 6 आर्सेनिक-युक्त और 9 आयरन-युक्त पानी की समस्या से जूझ रहे हैं।
दरअसल, हरित क्रांति ने भारत के अनाज उत्पादन को बढ़ाने में मदद की, लेकिन इसके अधिक हानिकारक प्रभावों का खामियाजा पंजाब, हरियाणा और कुछ अन्य क्षेत्रों को भुगतना पड़ा है। पंजाब देश में सबसे तेज गति से जमीन से पानी निकाल रहा है।
उच्च फ्लोराइड वाले जिलों की संख्या 9 हुई
लुधियाना, अमृतसर, मंडी गोबिंदगढ़, कपूरथला आदि जैसे औद्योगिक केंद्रों के आसपास भारी धातुओं जैसे लेड, क्रोमियम, कैडमियम, कॉपर, साइनाइड, निकेल आदि पाया गया है। उच्च फ्लोराइड वाले जिलों की संख्या चार से बढ़ कर नौ हो गई है, जिसमें बठिंडा, फरीदकोट, फतेहगढ़ साहिब, फिरोजपुर, मानसा, मुक्तसर, पटियाला, संगरूर और तरनतारन शामिल हैं।
1965 में लद्दड़ां निवासी किरपाल सिंह ने अपने खेतों की सिंचाई के लिए ट्यूबवेल लगवाया था तो पानी 30 फुट पर ही मिल गया था। जहां पहले 30 फुट पर पानी निकल आता था वहां ट्यूबवेल के लिए अब 300 फुट का बोर करना पड़ रहा है। यूके शिफ्ट हो चुके किरपाल सिंह का कहना है कि 60 साल में पानी काफी खराब हुआ है, पानी में आगे हालात खराब होते दिखाई दे रहे हैं।
मालवा इलाके में सिंचाई के पानी के लिए पहले ट्यूबवेल की जरूरत नहीं थी, नहरों से हफ्ते में एक बार सिंचाई का पानी मिल जाया करता था, लेकिन अब नहरें सूख चुकी हैं। सीएम भगवंत मान का जिला संगरूर पंजाब के डार्क जोन में आ चुका है। संगरूर के ज्यादातर गांवों में ग्राउंड वाटर का लेवल 350 से 500 फुट नीचे चला गया है।
डीएसआर फ्राड है
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के डॉ. हरि सिंह बराड़ का कहना है कि राज्य सरकार के रिकॉर्डों से पता चलता है कि 2020-21 में केंद्र ने पंजाब से करीब 203 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद की। औसतन 2020-21 में धान की खेती के लिए पंजाब को 54,400 बिलियन लीटर पानी चाहिए था।
सरकार पंजाब में धान की खेती के पूरे क्षेत्र को डीएसआर के अंदर लाने का जोर लगा रही है लेकिन हकीकत यह है कि डीएसआर एक फ्राड है। सीधी बिजाई से कोई फायदा नहीं है, उलटा पानी अधिक लग रहा है। हमें समझना होगा, सरकार अगर पंजाब को बचाने के लिए सीरियस है तो धान के चक्रव्यूह से निकालो। पंजाब में नई फसलों को सरकार खरीदे, पानी बच जाएगा।
पंजाब में 1400 किलोमीटर नदियां, नहरें और नाले सूख चुके हैं। जिस कारण भूजल का प्रयोग बढ़ा है। पानी को बचाने के लिए केंद्र व पंजाब सरकार को मिलकर एक आंदोलन खड़ा करना होगा, जिसमें प्रत्येक नागरिक व किसानों को शामिल करना होगा वर्ना अगले दस साल बाद पंजाब पानी को तरसेगा।