
जम्मू-कश्मीर एक बार फिर आतंक की भयानक छाया में कांप उठा। हाल ही में हुए आतंकी हमले ने न केवल निर्दोष लोगों की जान ली, बल्कि मानवता को शर्मसार कर दिया। यह हमला सामान्य गोलीबारी या ग्रेनेड फेंकने से कहीं अधिक निर्मम और योजनाबद्ध था। चश्मदीदों और बचकर निकले कुछ लोगों के बयान सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।हमले की शुरुआती जानकारी के मुताबिक, आतंकियों ने पहले लोगों को रोका और उनके पहचान पत्र मांगे। इसके बाद उन्हें कलमा पढ़ने को मजबूर किया गया, जिससे उनकी धार्मिक पहचान की पुष्टि की जा सके। जिन लोगों से कलमा सही ढंग से नहीं पढ़ा गया या जिनकी वेशभूषा से मुसलमान होने की पुष्टि नहीं हो सकी, उन्हें आतंकियों ने न केवल मार डाला, बल्कि उनके कपड़े उतरवाकर उन्हें अपमानित भी किया।एक स्थानीय व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “आतंकी शांत दिखने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उनके इरादे बेहद खतरनाक थे। उन्होंने पहले लोगों को एकत्रित किया, फिर उनकी धार्मिक पहचान पूछी और बाद में एक-एक कर गोलियों से भून डाला।”हमले के बाद मौके पर पहुंची सुरक्षा बलों की टीम ने तुरंत इलाके को घेर लिया और आतंकियों की तलाश में व्यापक सर्च ऑपरेशन शुरू किया। पूरे क्षेत्र में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है, और आस-पास के गांवों में तलाशी अभियान तेज़ कर दिए गए हैं। घटना में मारे गए लोगों की संख्या बढ़ सकती है क्योंकि कई घायल अस्पताल में गंभीर हालत में हैं।गृह मंत्रालय ने हमले को बेहद गंभीर मानते हुए कहा है कि यह हमला पूर्व नियोजित और सांप्रदायिक हिंसा फैलाने की मंशा से किया गया है। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है और सुरक्षा बलों को “shoot-at-sight” नीति अपनाने की छूट दी है। घटना के बाद पूरे देश में शोक और गुस्से का माहौल है। विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने इस हमले की निंदा की है और दोषियों को कठोरतम सज़ा देने की मांग की है। सोशल मीडिया पर भी लोग इस बर्बरता के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं और सरकार से कड़े कदम उठाने की मांग कर रहे हैं।एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया है कि जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापित करने की राह आसान नहीं है। आतंकवादी तत्व अब न केवल सुरक्षा बलों को, बल्कि आम नागरिकों को भी अपनी क्रूरता का निशाना बना रहे हैं। ऐसे में सुरक्षा एजेंसियों के सामने चुनौती और अधिक गंभीर हो गई है।
निष्कर्ष:
जम्मू-कश्मीर में हुआ यह हमला आतंक की सबसे क्रूर और शर्मनाक तस्वीर पेश करता है। कलमा पढ़वाकर लोगों को पहचान के नाम पर मार देना इस बात का प्रमाण है कि आतंकियों का मकसद सिर्फ जान लेना नहीं, बल्कि समाज में डर और नफरत फैलाना भी है। ऐसे समय में देश को एकजुट होकर आतंक के खिलाफ मजबूत और निर्णायक कार्रवाई की ज़रूरत है।