नवजात से दूर होती ममता: उत्तराखंड में प्रसवोत्तर अवसाद का बढ़ता खतरा

उत्तराखंड समेत देश के अन्य हिस्सों में हाल ही में किए गए एक बड़े शोध में सामने आया है कि मां बनने के बाद कई महिलाएं प्रसवोत्तर अवसाद (Postpartum Depression) की गंभीर समस्या से जूझ रही हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस मानसिक विकार का सीधा असर मां और नवजात के रिश्ते पर पड़ रहा है। माताओं के अंदर ममत्व का भाव खत्म होता जा रहा है, जिससे वे अपने नवजात शिशु से भावनात्मक रूप से जुड़ नहीं पा रही हैं।

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार, 20,043 महिलाओं पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि करीब 22% महिलाएं प्रसवोत्तर अवसाद से पीड़ित पाई गईं। यह अध्ययन भारत के दक्षिण, पश्चिम और उत्तर क्षेत्रों के शहरी अस्पतालों में किया गया, जिसमें 25 वर्ष या उससे अधिक उम्र की महिलाओं को शामिल किया गया जो हाल ही में मां बनी थीं।

शोध में यह भी स्पष्ट किया गया कि प्रसवोत्तर अवसाद मुख्यतः तीन प्रकार के मानसिक विकारों के रूप में देखा जाता है —

  1. प्रसवोत्तर अवसाद (Postpartum Depression)
  2. प्रसवोत्तर ब्लूज (Postpartum Blues)
  3. प्रसवोत्तर मनोविकृति (Postpartum Psychosis)

इन तीनों स्थितियों का प्रभाव मां के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ नवजात शिशु के पोषण और देखभाल पर भी गहरा असर डालता है।

राजकीय दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय की महिला एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. नीतू मागो बताती हैं कि प्रसवोत्तर अवसाद से पीड़ित महिलाएं अक्सर नींद की कमी, अत्यधिक थकान, भूख न लगना, और चिड़चिड़ापन जैसी समस्याओं का सामना करती हैं। चूंकि उनके अंदर बच्चे के प्रति प्राकृतिक ममता की भावना कम हो जाती है या समाप्त हो जाती है, इसलिए वे शिशु को स्तनपान कराने में भी असमर्थ हो जाती हैं, जिससे नवजात का पोषण और स्वास्थ्य प्रभावित होता है।

क्यों होता है प्रसवोत्तर अवसाद?

डॉक्टरों के अनुसार, यह समस्या केवल शारीरिक नहीं, बल्कि सामाजिक और भावनात्मक कारणों से भी जुड़ी होती है। डॉ. मागो के मुताबिक, इसके मुख्य कारणों में शामिल हैं:

  • घर की कमजोर आर्थिक स्थिति
  • घरेलू हिंसा
  • पति-पत्नी के बीच तनावपूर्ण संबंध
  • लड़की के जन्म के बाद पारिवारिक दबाव

इन कारणों की वजह से महिलाएं मानसिक रूप से असुरक्षित महसूस करने लगती हैं, जो धीरे-धीरे अवसाद में बदल जाता है।

चिकित्सकों का कहना है कि अस्पताल की ओपीडी में हर सप्ताह चार से अधिक ऐसे मामले सामने आते हैं, जो इस समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं।

गंभीर स्थिति: पोस्टपार्टम मनोविकृति

एम्स ऋषिकेश के साइकेट्री विभाग के अध्यक्ष डॉ. रवि गुप्ता का मानना है कि प्रसव के बाद महिलाओं में देखा जाने वाला पोस्टपार्टम मनोविकृति विकार सबसे अधिक गंभीर होता है। इस स्थिति में महिलाएं आक्रामक, आत्मघाती प्रवृत्ति की हो सकती हैं, और कभी-कभी अपने या शिशु के लिए खतरनाक भी साबित हो सकती हैं। वहीं पोस्टपार्टम अवसाद में महिला अत्यधिक उदास, सुस्त और सामाजिक रूप से कटाव महसूस करती है।

पोस्टपार्टम ब्लूज, हालांकि तुलनात्मक रूप से हल्का विकार है, लेकिन अगर इसे नज़रअंदाज़ किया जाए तो यह भी धीरे-धीरे गंभीर अवसाद में बदल सकता है। इन तीनों ही मानसिक स्थितियों की पहचान क्लीनिकल जांच के ज़रिये की जाती है और समय पर इलाज न हो तो इसके परिणाम घातक हो सकते हैं।


प्रसवोत्तर अवसाद से बचाव के उपाय:

चिकित्सकों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस समस्या से बचने और उबरने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं:

  1. अन्य माताओं से संवाद करें – अनुभव साझा करने से भावनात्मक सहयोग मिलता है।
  2. पोषणयुक्त और संतुलित आहार लें – मानसिक स्थिति का संबंध सीधे शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ा होता है।
  3. यथार्थवादी अपेक्षाएं रखें – खुद पर या शिशु की देखभाल पर अत्यधिक दबाव न डालें।
  4. परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं – सकारात्मक माहौल मानसिक स्थिति को बेहतर बनाता है।

यह समस्या न केवल एक मां की निजी पीड़ा है, बल्कि यह समाज और स्वास्थ्य तंत्र के लिए चेतावनी भी है कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर हमारी संवेदनशीलता और सहयोग की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं।
समय रहते यदि पहचान कर सही इलाज और समर्थन मिल जाए, तो मां और शिशु दोनों को एक स्वस्थ और स्नेहिल जीवन दिया जा सकता है।

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