उत्तरकाशी क्लाउड बर्स्ट: बादलों की चादर ने सेटेलाइट आंखों को भी किया बेअसर

उत्तरकाशी जनपद के धराली क्षेत्र में आई भीषण आपदा के पीछे के कारणों की गहराई से पड़ताल के लिए उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसेक) पूरी क्षमता के साथ जुट गया है। प्राकृतिक आपदा की गंभीरता को देखते हुए यूसैक ने इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) और अमेरिका स्थित प्रसिद्ध भू-स्थानिक डाटा प्रदाता कंपनी मैक्सर टेक्नोलॉजीज (Maxar) से सेटेलाइट चित्र मंगवाए हैं, ताकि घटना के पीछे की वजहों को स्पष्ट रूप से समझा जा सके।

हालांकि, वैज्ञानिकों की इस हाई-टेक कोशिशों को मौसम ने धोखा दे दिया। प्राप्त दोनों एजेंसियों के सेटेलाइट चित्रों में खीरगंगा क्षेत्र के अपर कैचमेंट पर घने बादल छाए होने के कारण आपदा से पहले और बाद की स्थिति को स्पष्ट रूप से नहीं देखा जा सका। इससे वैज्ञानिक विश्लेषण में कठिनाई उत्पन्न हो गई है और अब सबकी निगाहें मौसम में सुधार पर टिकी हैं।

बुधवार को इस विषय पर एक महत्वपूर्ण संयुक्त बैठक आयोजित की गई, जिसमें यूसैक के साथ-साथ वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (IIRS) और अन्य तकनीकी एजेंसियों के वरिष्ठ वैज्ञानिक व विशेषज्ञ उपस्थित रहे। बैठक में इसरो और मैक्सर से प्राप्त चित्रों का विश्लेषण किया गया और यह निष्कर्ष निकला कि बादलों के घने आवरण के चलते आपदा स्थल की सैटेलाइट इमेज धुंधली और अस्पष्ट रही हैं।

यूसैक ने दोनों संस्थाओं से ताजा और हाई-रेजोल्यूशन चित्र पुनः मंगवाने का अनुरोध किया है, जिससे इस प्राकृतिक त्रासदी के कारणों की वैज्ञानिक पुष्टि की जा सके। हालांकि मौसम विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, 11 अगस्त तक मौसम में खास सुधार की संभावना नहीं है, जिससे स्पष्ट तस्वीरों की उपलब्धता में और देरी हो सकती है।

इस बीच, यूसैक के निदेशक प्रो. दुर्गेश पंत ने कहा है कि,

“राज्य सरकार आपदा से संबंधित हर पहलू की गहराई से जांच कर रही है। तकनीक की मदद से राहत और बचाव कार्यों को अधिक प्रभावी बनाया जा रहा है। हम सेटेलाइट डाटा, जीआईएस, और अन्य नवीनतम वैज्ञानिक तरीकों से हरसंभव प्रयास कर रहे हैं कि धराली आपदा के कारणों की सही जानकारी जल्द से जल्द मिल सके।”

धराली में बादल फटने जैसी घटना ने इलाके में तबाही मचा दी थी, जिसमें न केवल भारी जनधन की क्षति हुई, बल्कि हिमालयी क्षेत्र की भौगोलिक अस्थिरता पर भी सवाल खड़े हुए हैं। अब यह देखना बाकी है कि कब तक मौसम वैज्ञानिकों को स्पष्ट चित्र प्रदान करने की अनुमति देता है, ताकि इस पहेली को सुलझाया जा सके और भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचाव की रणनीति बनाई जा सके।

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