
देहरादून। उत्तराखंड सरकार ने राज्य के हजारों शिक्षकों के हित में एक महत्वपूर्ण और राहत भरा फैसला लिया है। लंबे समय से चली आ रही अतिरिक्त वेतनवृद्धि की वसूली की प्रक्रिया को न केवल तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया गया है, बल्कि जिन शिक्षकों से यह धनराशि पहले ही वसूली जा चुकी है, उसे भी अब वापस लौटाया जाएगा। इस संबंध में शासन स्तर से आधिकारिक आदेश जारी कर दिए गए हैं।
मामला वर्ष 2016 से जुड़ा है, जब सातवें वेतनमान के तहत शिक्षा विभाग ने शिक्षकों को चयन और प्रोन्नत वेतनमान मिलने पर एक अतिरिक्त वेतनवृद्धि का लाभ देना शुरू किया था। इस व्यवस्था के तहत कई शिक्षकों को उनकी नियुक्ति या प्रोन्नति के समय अतिरिक्त वेतनवृद्धि मिली। हालांकि, 6 सितंबर 2019 को शासन ने एक आदेश जारी कर इस लाभ पर रोक लगा दी। इसके तुरंत बाद, 13 सितंबर 2019 को एक और आदेश जारी कर शिक्षकों को दी गई अतिरिक्त वेतनवृद्धि की राशि की वसूली करने का निर्देश दिया गया।
इस निर्णय से शिक्षा जगत में भारी असंतोष फैल गया। कई शिक्षकों से यह राशि सीधे वेतन से काटकर वसूली गई, जबकि कुछ शिक्षक इस आदेश के खिलाफ न्यायालय का रुख कर गए। मामला उत्तराखंड हाईकोर्ट तक पहुंचा, जहां शिक्षकों को राहत मिली। कोर्ट के आदेश के बाद अब शासन ने सभी वसूली आदेशों को निरस्त करते हुए स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं कि जितनी भी धनराशि वसूली जा चुकी है, उसे शिक्षकों को लौटाया जाए।
शासन के आदेश के बाद माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती ने सभी जनपदों के मुख्य शिक्षा अधिकारियों और दोनों मंडलों के अपर निदेशकों को निर्देश भेज दिए हैं, ताकि धनवापसी की प्रक्रिया जल्द से जल्द पूरी की जा सके।
राजकीय शिक्षक संघ के प्रांतीय महामंत्री रमेश पैन्युली ने इस फैसले को शिक्षकों के लिए “बड़ी राहत” बताया। उन्होंने कहा, “सातवें वेतनमान के तहत दी गई व्यवस्था के अनुसार शिक्षकों को चयन और प्रोन्नत वेतनमान पर एक वेतनवृद्धि का लाभ दिया जाना चाहिए था। 2019 में इस पर रोक लगाकर शिक्षकों के साथ अन्याय किया गया, जबकि राज्य के लगभग डेढ़ लाख अन्य कर्मचारियों को यह लाभ अब भी मिल रहा है। विभाग के गलत निर्णय से शिक्षकों को मानसिक और आर्थिक परेशानी उठानी पड़ी, जिसे अब सुधारा गया है।”
शिक्षक समुदाय का कहना है कि यह फैसला न केवल आर्थिक रूप से राहत देगा, बल्कि लंबे समय से चली आ रही नाराजगी को भी खत्म करेगा। अब शिक्षा विभाग के जिम्मे यह सुनिश्चित करना होगा कि धनवापसी की प्रक्रिया पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से पूरी हो, ताकि लाभार्थियों को शीघ्र ही उनका हक मिल सके।