
उत्तराखंड में शिक्षा व्यवस्था को पारदर्शी और सुव्यवस्थित बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए राज्य सरकार ने मंगलवार को उत्तराखंड अल्पसंख्यक विधेयक 2025 विधानसभा पटल पर रख दिया। यह विधेयक बुधवार को पारित होकर लागू हो जाएगा। इसके लागू होते ही राज्य के सभी मदरसों और अन्य अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को मान्यता लेना अनिवार्य होगा। इस प्रक्रिया की देखरेख और नियमों का अनुपालन सुनिश्चित कराने के लिए सरकार एक नया अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण गठित करेगी।
अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण का गठन
इस अधिनियम के अंतर्गत उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण की स्थापना होगी। इसमें एक अध्यक्ष और कुल 11 सदस्य होंगे। अध्यक्ष अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित ऐसा शिक्षाविद होगा, जिसके पास कम से कम 15 वर्षों का शिक्षण अनुभव और उच्च शिक्षा संस्थान में न्यूनतम 5 वर्ष प्रोफेसर के रूप में सेवा का अनुभव हो।
11 सदस्यों में से छह सदस्य अल्पसंख्यक समुदायों से होंगे। इनमें मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी समुदाय से एक-एक सदस्य शामिल होगा। अन्य पांच सदस्यों में—
- एक राज्य सरकार का सेवानिवृत्त सचिव स्तर का अधिकारी,
- विद्यालयी शिक्षा के क्षेत्र में 10 वर्ष या उससे अधिक अनुभव रखने वाला सामाजिक कार्यकर्ता,
- महानिदेशक विद्यालयी शिक्षा,
- एससीईआरटी का निदेशक,
- निदेशक अल्पसंख्यक कल्याण शामिल होंगे।
यह प्राधिकरण न केवल मान्यता प्रदान करेगा, बल्कि संस्थानों को नियमों का पालन कराने की भी जिम्मेदारी निभाएगा। सरकार भी सीधे इस प्राधिकरण को निर्देश दे सकेगी। यदि प्राधिकरण किसी कारण अनुपालन नहीं करता, तो सरकार अपने स्तर से नियम लागू करेगी, और प्राधिकरण को उसे मानना ही होगा।
मदरसों को दोबारा लेनी होगी मान्यता
अधिनियम में यह स्पष्ट किया गया है कि वर्तमान में उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त मदरसों को 2025-26 शैक्षणिक सत्र तक शिक्षा देने की अनुमति रहेगी। लेकिन सत्र 2026-27 से धार्मिक शिक्षा देने के लिए उन्हें नए प्राधिकरण से दोबारा मान्यता लेनी होगी। यह मान्यता तीन शैक्षणिक सत्रों के लिए मान्य होगी और उसके बाद इसका नवीनीकरण कराना होगा।
मान्यता के लिए जरूरी शर्तें
नए अधिनियम में मान्यता प्राप्त करने के लिए कुछ कठोर और पारदर्शी शर्तें भी जोड़ी गई हैं—
- शैक्षिक संस्थान की जमीन उसकी सोसाइटी के नाम पर दर्ज होनी अनिवार्य होगी।
- सभी वित्तीय लेन-देन किसी वाणिज्यिक बैंक के खाते से ही संचालित किए जाएंगे, जो संस्थान के नाम पर होना चाहिए।
- कोई भी अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान अपने छात्रों या कर्मचारियों को धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए मजबूर नहीं करेगा।
- शिक्षकों की नियुक्ति केवल परिषद द्वारा निर्धारित योग्यता के अनुसार ही की जाएगी।
सरकार का उद्देश्य
इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य राज्य में अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों और मदरसों को एक पारदर्शी, जवाबदेह और नियंत्रित ढांचे में लाना है, ताकि छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके। इसके साथ ही धार्मिक शिक्षा को भी नियमबद्ध तरीके से संचालित किया जा सकेगा।
नए अधिनियम के लागू होने के बाद उत्तराखंड में शिक्षा व्यवस्था में बड़ा बदलाव आने की संभावना है। विशेषकर मदरसों के लिए यह कदम ऐतिहासिक साबित हो सकता है, क्योंकि अब उन्हें हर स्तर पर पारदर्शिता और सरकारी नियमों के दायरे में आकर काम करना होगा।