पश्चिमी विक्षोभ ने उत्तराखंड में मचाई आफत, लगातार बारिश से पहाड़ों में दरार का खतरा बढ़ा

उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में इस बार मानसून बेहद विनाशकारी साबित हो रहा है। राज्यभर में लगातार भूस्खलन, बादल फटने और सड़क अवरुद्ध होने जैसी घटनाओं से जनजीवन अस्त-व्यस्त है और जान-माल का भारी नुकसान हो रहा है। मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पूरे मानसून सीजन में औसतन 1131.2 मिमी वर्षा दर्ज की गई, जो सामान्य 963.7 मिमी की तुलना में 17 प्रतिशत अधिक है। हालांकि, अगस्त में बारिश सामान्य से डेढ़ गुना ज्यादा हुई, और बारिश का पैटर्न असमान रहा। कुछ जिलों में रिकॉर्ड तोड़ वर्षा हुई तो कुछ में सामान्य से भी कम वर्षा दर्ज की गई।

विशेषज्ञों के अनुसार, इस आपदा के पीछे मुख्य कारण ग्रीष्मकाल में हुई सामान्य से अधिक वर्षा और मानसून के दौरान सीमित क्षेत्रों में अत्यधिक तीव्र वर्षा के दौर हैं। इसके अलावा, उत्तराखंड और उत्तरी हिमालयी क्षेत्रों में दक्षिण-पश्चिम मानसून के साथ सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ के साइक्लोनिक सर्कुलेशन ने हालात और कठिन बना दिए हैं।

भूस्खलन और फ्लैश फ्लड की घटनाओं में वृद्धि
अगस्त माह में सामान्य से 46 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज होने के कारण पहाड़ी जिलों में भूस्खलन और फ्लैश फ्लड की घटनाएं बढ़ गई हैं। कई क्षेत्रों में अचानक बादल फटने से जनजीवन ठप्प हो गया और कई गांवों का संपर्क सड़क मार्ग से कट गया। राज्य मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक सीएस तोमर के अनुसार, इस बार बारिश का असामान्य पैटर्न, मिट्टी में नमी और पहाड़ी ढलानों की संवेदनशीलता ने स्थिति और खराब कर दी है।

सड़कें और पुल प्रभावित, यातायात ठप
भारी बारिश और फ्लैश फ्लड के कारण कई सड़कें और पुल बह गए हैं, जिससे यातायात पूरी तरह बाधित हो गया है। प्रभावित इलाकों में राहत और बचाव कार्य चल रहे हैं, लेकिन लगातार बारिश और बढ़ते भूस्खलन के खतरे के कारण प्रशासन की चुनौती बढ़ गई है।

सितंबर में भी भारी वर्षा का अनुमान
राज्य मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक सीएम तोमर ने चेतावनी दी है कि अगले कुछ दिनों तक भारी से बहुत भारी बारिश का क्रम जारी रह सकता है। दो सितंबर तक अधिकांश क्षेत्रों में आरेंज अलर्ट जारी है। सितंबर के पहले सप्ताह में वर्षा का सिलसिला जारी रह सकता है, जबकि दूसरे सप्ताह से बारिश थोड़ी धीमी हो सकती है। लेकिन पूरे सितंबर माह में सामान्य से अधिक वर्षा होने का अनुमान है।

ग्रीष्मकाल की वर्षा ने बढ़ाई संवेदनशीलता
इस बार मार्च से मई के बीच ग्रीष्मकाल में भी सामान्य से अधिक वर्षा हुई। मई माह में भी तापमान सामान्य स्तर पर रहा और वर्षा सामान्य से 80 प्रतिशत अधिक दर्ज हुई। पूरे ग्रीष्मकाल में मेघ 32 प्रतिशत अधिक बरसे। जून से मानसून शुरू होने के बाद भी नियमित अंतराल पर वर्षा जारी रही, जिससे पहाड़ी भूमि में नमी अधिक बनी और भारी बारिश के दौरान भूस्खलन का खतरा बढ़ गया।

जिलावार वर्षा की स्थिति
बागेश्वर में इस मानसून में 2208.7 मिमी वर्षा हुई, जबकि सामान्य 653.7 मिमी होती है (238% अधिक), चमोली में 1117.7 मिमी (85% अधिक), हरिद्वार 1238.3 मिमी (53% अधिक), टिहरी गढ़वाल 1186.5 मिमी (52% अधिक), देहरादून 1496.6 मिमी (24% अधिक), अल्मोड़ा 795.1 मिमी (22% अधिक), ऊधम सिंह नगर 1032.8 मिमी (11% अधिक), उत्तरकाशी 1064.3 मिमी (10% अधिक) रही। वहीं, पिथौरागढ़ में 1166.9 मिमी (-6%), रुद्रप्रयाग 1231.7 मिमी (-6%), नैनीताल 1101.2 मिमी (-13%), चंपावत 856.3 मिमी (-20%) और पौड़ी गढ़वाल 765.3 मिमी (-27%) वर्षा हुई। प्रदेश में औसत 1131.2 मिमी रही।

विशेषज्ञों ने चेताया है कि अत्यधिक वर्षा और पश्चिमी विक्षोभ के कारण भूस्खलन और फ्लैश फ्लड की घटनाएं लगातार बढ़ सकती हैं। पर्वतीय जिलों में प्रशासन और स्थानीय लोग सतर्क रहें और आपदा प्रबंधन की तैयारियों को और मजबूत करें।

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