सुप्रीम कोर्ट का चेतावनीपूर्ण बयान: हिमाचल-उत्तराखंड में अवैध वनों की कटाई से बढ़ रही आपदाएं

सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न राज्यों में हाल ही में आई अभूतपूर्व भूस्खलन और बाढ़ की घटनाओं पर संज्ञान लिया है और इस मामले में केंद्र एवं राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने कहा कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर जैसे पहाड़ी राज्यों में पेड़ों की अवैध कटाई आपदाओं के पीछे एक प्रमुख कारण बन रही है।

याचिका और सुनवाई

यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई, जिसमें अवैध वनों की कटाई को प्राकृतिक आपदाओं का मुख्य कारण बताया गया था। सुप्रीम कोर्ट की इस मामले की सुनवाई की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने की। पीठ ने केंद्र सरकार, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और पंजाब की राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया।

सुधारात्मक उपायों का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध की है और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से अनुरोध किया है कि वह संबंधित विभागों को आवश्यक सुधारात्मक उपाय सुनिश्चित करने के निर्देश दें। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और अवैध कटाई रोकने के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाए जाएं, ताकि भविष्य में पहाड़ी क्षेत्रों में आपदाओं का खतरा कम किया जा सके।

हिमाचल और उत्तराखंड में पेड़ों की कटाई का असर

विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों के अनुसार हिमाचल और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में पेड़ों की कटाई से न केवल मिट्टी की स्थिरता प्रभावित होती है, बल्कि वर्षा के दौरान पानी के बहाव को नियंत्रित करने की प्राकृतिक क्षमता भी कम हो जाती है। इसका नतीजा यह होता है कि भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाएं तेजी से और व्यापक रूप से फैलती हैं।

कोर्ट का व्यापक दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केवल राज्यों को ही नहीं, बल्कि केंद्र सरकार और संबंधित राष्ट्रीय प्राधिकरणों को भी जिम्मेदार ठहराया। कोर्ट का कहना है कि अगर एनएचएआई और अन्य एजेंसियां राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण और अन्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के दौरान पर्यावरणीय मानकों का पालन नहीं करती हैं, तो इससे भी प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम बढ़ता है।

आगे की कार्रवाई

कोर्ट ने सभी संबंधित विभागों से दो सप्ताह में जवाब मांगा है और कहा है कि आगामी सुनवाई में यह देखा जाएगा कि क्या प्रभावी उपाय किए गए हैं और अवैध वनों की कटाई पर रोक लगाई गई है। अदालत ने यह भी जोर दिया कि पहाड़ी राज्यों में विकास परियोजनाओं को पर्यावरण संरक्षण के साथ संतुलित तरीके से लागू किया जाए।

विशेषज्ञों की चेतावनी

पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि अगर समय रहते प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में हिमाचल, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में आपदाओं की तीव्रता और बढ़ सकती है। उन्होंने चेताया कि पेड़ों की कटाई रोकने और सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई अनिवार्य है।

सुप्रीम कोर्ट की यह कार्रवाई न केवल राज्यों और केंद्र सरकारों के लिए चेतावनी है, बल्कि आम जनता और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के लिए भी संदेश है कि पहाड़ी क्षेत्रों में वनों और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।

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