
नेपाल इस समय भारी राजनीतिक और सामाजिक संकट से गुजर रहा है। सरकार के खिलाफ व्यापक पैमाने पर हो रहे प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया है। भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध के विरोध में शुरू हुए आंदोलनों ने पूरे देश में आगजनी, तोड़फोड़ और झड़पों का रूप ले लिया। हालात बिगड़ने पर नेपाली सेना को सड़कों पर उतरना पड़ा और देशभर में कर्फ्यू व राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लागू कर दिए गए। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि संसद को तत्काल भंग कर एक अंतरिम सरकार बनाई जाए, जो नए चुनाव कराकर जनता को नया जनादेश दिलाए।
अंतरिम सरकार के गठन की कोशिशें तेज हो गई हैं। आंदोलनकारी और जेन-जी के नेता पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने की मांग पर अड़े हैं। काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह (बालेन) ने भी इस प्रस्ताव का खुला समर्थन किया और कहा कि संसद तुरंत भंग कर दी जानी चाहिए। सेना प्रमुख अशोक राज सिगडेल ने राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल से मुलाकात की और मौजूदा हालात की जानकारी दी। वहीं, सेना मुख्यालय में जेन-जी प्रतिनिधियों और अधिकारियों के बीच लगातार बातचीत हो रही है, जो राष्ट्रपति भवन (शीतल निवास) तक भी जा सकती है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जल्द ही सुशीला कार्की के नाम पर औपचारिक मुहर लग सकती है।
बीते दो दिनों में हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों ने नेपाल को हिला कर रख दिया है। गृह मंत्रालय के अनुसार, 31 लोग मारे गए और 1000 से ज्यादा लोग घायल हुए। संसद भवन के बाहर हुई गोलीबारी में 19 प्रदर्शनकारियों की जान चली गई, जबकि काठमांडू के कोटेश्वर इलाके में तीन पुलिसकर्मी भीड़ की हिंसा का शिकार हुए। कालीमाटी थाने पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों की भिड़ंत में तीन और प्रदर्शनकारी मारे गए। कुल मिलाकर 633 लोग गंभीर रूप से घायल हुए। इस हिंसा में नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा व उनकी पत्नी एवं विदेश मंत्री आरजू राणा देउबा भी घायल हो गए।
इस बीच नेपाल की जेलों में भी हालात बिगड़े। सुरक्षाकर्मियों और कैदियों के बीच झड़प में कम से कम तीन कैदियों की मौत हो गई, जबकि हिंसा का फायदा उठाकर 15,000 से अधिक कैदी देशभर की दो दर्जन से ज्यादा जेलों से फरार हो गए। अब तक कुल आठ कैदियों की मौत हो चुकी है। नेपाल-भारत सीमा पर सशस्त्र सीमा बल (SSB) ने 35 फरार कैदियों को पकड़ा है, जिनमें 22 उत्तर प्रदेश, 10 बिहार और तीन पश्चिम बंगाल से पकड़े गए।
हालात काबू में रखने के लिए काठमांडू, ललितपुर और भक्तपुर जिलों में कर्फ्यू कल सुबह 6 बजे तक बढ़ा दिया गया है। हालांकि, आवश्यक सेवाओं को समयबद्ध छूट दी गई है। सेना ने अपील की है कि लोग सुबह 6 से 9 और शाम 5 से 7 बजे तक जरूरी सामान खरीद सकते हैं, लेकिन बड़े समूहों में इकट्ठा होने से बचें।
काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह ने युवाओं से धैर्य रखने की अपील करते हुए कहा कि नेपाल एक अभूतपूर्व दौर से गुजर रहा है और यह आंदोलन देश को सुनहरे भविष्य की ओर ले जाएगा। उन्होंने कहा कि अंतरिम सरकार का मकसद चुनाव कराना और देश को नया जनादेश देना होना चाहिए। शाह ने साफ कहा कि वह सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने के जेन-जी के प्रस्ताव का पूर्ण समर्थन करते हैं।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की इस पूरे आंदोलन की सबसे प्रमुख चेहरा बनकर उभरी हैं। उन्होंने न केवल युवाओं के प्रदर्शन का समर्थन किया बल्कि सरकार की कार्रवाई को ‘हत्या’ करार देते हुए खुद भी सड़कों पर उतर आईं। उन्होंने कहा था कि यदि 1000 युवा उनके पक्ष में हस्ताक्षर करेंगे तो वह अंतरिम सरकार की जिम्मेदारी लेने को तैयार होंगी। अब तक 2500 से ज्यादा युवाओं ने उनके समर्थन में हस्ताक्षर किए हैं। कार्की का जन्म 7 जून 1952 को विराटनगर में हुआ था। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन और त्रिभुवन विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की। सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई ऐतिहासिक मामलों की सुनवाई की और उन्हें न्यायिक सुधारों की मजबूत आवाज माना जाता है।
दूसरी ओर, बालेन शाह भी युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय चेहरा हैं। 1990 में जन्मे बालेन एक सिविल इंजीनियर और रैपर रहे हैं। उन्होंने काठमांडू मेट्रोपोलिटन सिटी के मेयर चुनाव 2022 में स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर जीतकर इतिहास रचा। टाइम मैगजीन ने 2023 में उन्हें टॉप 100 उभरते नेताओं की सूची में शामिल किया था। सोशल मीडिया पर सक्रियता और युवाओं के मुद्दों पर साफ रुख ने उन्हें खास पहचान दिलाई। बालेन शाह ने इस आंदोलन को समर्थन देते हुए कहा है कि हालांकि वे आयु सीमा के कारण इसमें प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं हो सकते, लेकिन उनकी पूरी सहानुभूति जेन-जी के साथ है।
नेपाल की मौजूदा अशांति न केवल देश बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए चिंता का विषय बन गई है। राजनीतिक अस्थिरता, सेना की सक्रिय भूमिका और जनता के उग्र विरोध ने यह संकेत दे दिया है कि नेपाल अब निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। अंतरिम सरकार का गठन होगा या हालात और बिगड़ेंगे, यह आने वाले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा।