जम्मू कश्मीर: विधानसभा चुनाव के लिए कई दिग्गजों को नए ठौर की तलाश, परिसीमन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद लगाने लगे चुनावी गणित

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जम्मू-कश्मीर में परिसीमन और अनुच्छेद 370 हटने के बाद होने वाले पहले विधानसभा चुनाव के लिए कई दिग्गजों को नई सियासी जमीन तलाशनी होगी। जम्मू और कश्मीर संभाग में सीटों का अंतर कम होने से शक्ति संतुलन भी बनेगा। कई बड़े नेताओं के विधानसभा हलके कटने और आरक्षित होने से उन्हें नए क्षेत्र की तलाश अभी से करनी होगी ताकि वे विधानसभा की दहलीज को लांघ सकें। 

एक दर्जन पूर्व मंत्रियों व पूर्व विधायकों को नए विकल्प की तलाश

जानकार बताते हैं कि परिसीमन से कम से कम एक दर्जन पूर्व मंत्रियों व पूर्व विधायकों को नए विकल्प की तलाश करनी होगी। इन सबके अलावा कश्मीरी पंडित और पीओजेके विस्थापितों को भी सशक्त होने का मौका मिल सकेगा। पहली बार अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित नौ सीटें विधानसभा चुनावों के नतीजों को प्रभावित करेंगी। जम्मू संभाग के राजोरी व पुंछ जिले की पांच ओर रियासी की एक सीट आरक्षित होने से इन छह सीटों की सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका रहेगी। इसी प्रकार कश्मीर के कुपवाड़ा, कुलगाम व अनंतनाग जिले में भी इनके लिए एक-एक सीटें आरक्षित हैं।

सभी पार्टियों का रुझान राजोरी व पुंछ जिलों में बढ़ा 

पहाड़ी जिलों की नौ सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित होने की वजह से पिछले कुछ समय से सभी पार्टियों का रुझान राजोरी व पुंछ जिलों में बढ़ गया है।  सुचेतगढ़ के आरक्षित होने से पूर्व मंत्री चौधरी शामलाल, रामनगर के आरक्षित होने से पूर्व विधायक आरएस पठानिया, अखनूर के आरक्षित होने से पूर्व मंत्री शामलाल शर्मा व पूर्व विधायक राजीव शर्मा, मढ़ के आरक्षित होने से पूर्व मंत्री चौधरी सुखनंदन व अजय सडोत्रा को नया क्षेत्र तलाशना होगा। विजयपुर सीट से गुढ़ा सलाथिया को हटाकर सांबा में शामिल किए जाने से पूर्व मंत्री सुरजीत सिंह सलाथिया के सामने भी दिक्कतें आ सकती हैं क्योंकि गुढ़ा सलाथिया उनका मजबूत वोट बैंक रहा है।

कश्मीरी पंडितों को राजनीतिक रूप से सशक्त होने का मौका मिलेगा

परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद लंबे समय से विस्थापन का दर्द झेल रहे कश्मीरी पंडितों को राजनीतिक रूप से सशक्त होने का मौका मिलेगा। यह समुदाय लंबे समय से विधानसभा की सीटें आरक्षित करने की मांग उठा रहा है। कश्मीरी पंडित अश्विनी चुरंगू का कहना है कि आयोग ने पंडित समुदाय की आवाज सुनी। उन्हें भी अब राजनीतिक रूप से सशक्त होने का मौका मिल सकेगा। 

जबर्दस्त विरोध पर भी नहीं बदली गुढ़ा सलाथिया व परगवाल की स्थिति

परिसीमन की प्रस्तावित रिपोर्ट जारी होने के बाद गुढ़ा सलाथिया को सांबा और जम्मू के परगवाल को अखनूर से जोड़ने का जबर्दस्त विरोध हो रहा था। परिसीमन आयोग के समक्ष इन दोनों इलाकों के लोगों ने जबर्दस्त विरोध जताया। परगवाल के लोगों ने तो कई दिनों तक धरना-प्रदर्शन भी किया। इन सारी स्थितियों के बाद भी परिसीमन आयोग ने इनके प्रत्यावेदन को स्वीकार नहीं किया। ज्ञात हो कि गुढ़ा सलाथिया पहले विजयपुर का हिस्सा रहा, जो परिसीमन के प्रस्ताव में सांबा के साथ कर दिया गया था। इसके साथ ही खौड़ में रहे परगवाल को अखनूर से जोड़े जाने का भी लोग सड़क पर उतरकर विरोध जता रहे थे। 

जम्मू में सबसे अधिक व रामबन, गांदरबल व शोपियां में सबसे कम सीटें

विधानसभा में सबसे अधिक 11 सीटें जम्मू जिले में हैं। सबसे कम दो-दो सीटें रामबन, गांदरबल व शोपियां जिले में है। कश्मीर संभाग में श्रीनगर जिले में सर्वाधिक आठ सीटें हैं।

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