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विश्व पर्यावरण दिवस: प्लास्टिक से ज्यादा निष्क्रिय व्यर्थ पदार्थ से पर्यावरण को हो रहा नुकसान, - The Indian Exposure

विश्व पर्यावरण दिवस: प्लास्टिक से ज्यादा निष्क्रिय व्यर्थ पदार्थ से पर्यावरण को हो रहा नुकसान,

Environment day

हिमाचल प्रदेश में निष्क्रिय व्यर्थ पदार्थ प्लास्टिक से भी बड़ी समस्या बन गए हैं। शीशें की बोतलें, ट्यूबलाइट्स, चीनी मिट्टी से बने कप, प्लेटें, कंक्रीट से टूटी-फूटी सामग्री, व्यर्थ बिजली के उपकरणों आदि ने यहां के वातावरण के लिए परेशानी बढ़ा दी है। ठिकाने लगाने वाले स्थानों पर ये व्यर्थ पदार्थ जमा हो रहे हैं। ऐसी ज्यादातर डंपिंग साइट कैचमेंट क्षेत्रों में ही हैं। इसका खुलासा केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयू) धर्मशाला के पर्यावरण एवं रसायन विज्ञान विभाग के प्रो. दीपक पंत और उनकी टीम की ओर से किए गए अध्ययन से हुआ है। प्रो. पंत और उनकी टीम ने धर्मशाला और इसके आसपास के क्षेत्रों में इस विषय पर अध्ययन किया है। इस संबंध में उनका एक शोध पत्र भी प्रकाशित हो चुका है।

प्रो. पंत ने कहा कि प्लास्टिक को तो इकट्ठा कर पिघलाने के बाद इसका पुनर्चक्रण किया जा सकता है, लेकिन इन निष्क्रिय पदार्थों के अवशेष (इनर्ट वेस्ट) का पुनर्चक्रण करना मुश्किल काम है। हिमाचल प्रदेश के अलावा ये पदार्थ यूं तो पूरे देश की समस्या बन गए हैं, लेकिन इस पहाड़ी राज्य में यह समस्या और भी खतरनाक है। डंपिंग साइटें केवल कैचमेंट क्षेत्र में होने के चलते जब भी बारिश आती है या बरसात होती है, तो ये पदार्थ पानी के बहाव आगे बहते जाते हैं। यह पानी के प्रमुख स्रोत जैसे नदी, नाले या खड्ड में मिल जाता है। इनमें से कई पदार्थ तो विषाक्त भी होते हैं। कई भारी धातुओं से बने होते हैं। ये मिट्टी, पानी, पर्यावरण, जीवों आदि को नुकसान पहुंचाते हैं। 

व्यर्थ पदार्थों को ठिकाने लगाने के लिए कारगर प्रणाली विकसित करने की जरूरत
प्रो. दीपक पंत ने सुझाया है कि इन व्यर्थ पदार्थों को ठिकाने लगाने के लिए प्रदेश में एक कारगर प्रणाली विकसित करने की जरूरत है। पीने के पानी को ऐसे खतरनाक पदार्थों से अलग कर साफ-सुथरा करने की एक तकनीक वह विकसित कर चुके हैं। यह पेटेंट भी हो चुकी है, लेकिन यह बाद का समाधान है। इस तरह के पदार्थों को ठिकाने लगाने के लिए पहले ही कोई नीति बननी चाहिए। 

भवनों के व्यर्थ पदार्थ जमीन को कर देंगे बंजर
भवनों के व्यर्थ पदार्थों की बात करें तो इनके साथ न तो विघटन के लिए आसानी से रासायनिक क्रिया होती है और न ही ये पदार्थ जैविक क्रिया को स्वीकार करते हैं। जिस तरह प्रदेश में कंक्रीट के भवन बन रहे हैं, उनकी तोड़फोड़ होने के बाद उनके व्यर्थ पदार्थ यहां की जमीन को बंजर कर देंगे। पर्यावरण के लिए भी ये पदार्थ घातक साबित होंगे। 

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