
लोकायुक्त की 16-17 वीं सांविधिक वार्षिक रिपोर्ट को उपराज्यपाल ने दिल्ली विधानसभा के पटल पर रखने की मंजूरी दे दी है। 2017-18 और 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट सौंपने में केजरीवाल सरकार की ओर से तीन साल की देरी पर एलजी ने कहा कि इससे जनहित के कई मुद्दों को विधानसभा के पटल पर रखने से वंचित किया गया। इससे पारदर्शिता, भ्रष्टाचार सहित कई और विषयों से जुड़े मामलों की जांच के उद्देश्यों भी पूरे नहीं किए जा सके।
दो साल की रिपोर्ट 2019 से सरकार के पास लंबित था। एलजी ने लोकायुक्त की तरफ से उठाए गए बिंदुओं का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री से कहा है कि ऐसी वैधानिक रिपोर्ट को समय पर भेजना तय करें ताकि लोकायुक्त की व्यवस्था सुदृढ़ बनी रहे।
एलजी ने मुख्यमंत्री को अवगत कराया है कि रिपोर्ट पेश करने में हुई देरी करने के बजाय विधानसभा के समक्ष पेश करने की दिशा में पहल करें। इससे लोकायुक्त की तरफ से की गई सिफारिशों और सुझावों पर बहस का मौका मिलेगा। साथ ही दिल्ली में लोकायुक्त की व्यवस्था को और सुदृढ़ होगी।
रिपोर्ट पेश करने में अत्यधिक देरी से भ्रष्टाचार सहित दूसरे मामलों पर विधानसभा को संज्ञान लेने से भी वंचित कर दिया। सार्वजनिक पदाधिकारियों के पदों का दुरुपयोग बताते हुए एलजी ने मुख्यमंत्री को सलाह दी है कि संबंधित मंत्री को कृपया मामले का नियत समय में निपटान के लिए मार्गदर्शन करें। इससे जनहित के अहम मामलों को विधानसभा के पटल पर रखकर उद्देश्यों को पूरा करना संभव होगा।
रिपोर्ट में लोकायुक्त ने स्वतंत्रता और शक्तियों में कमी, वित्तीय स्वायत्तता से समझौता, किसी मामले की जांच के लिए तंत्रों की अनुपलब्धता और सीमित क्षेत्राधिकार के तौर पर पेश आने वाली बाधाओं का जिक्र किया है।
एक अक्तूबर 2019 में लोकायुक्त ने तत्कालीन एलजी के समक्ष पहली बार रिपोर्ट को प्रस्तुत किया था। इसके बाद 23 अक्तूबर, 2019 को यह मामला मुख्य सचिव को भेज दिया गया। इसमें लोकायुक्त द्वारा बताए गए बिंदुओं पर केजरीवाल सरकार की ओर से लोकायुक्त अधिनियम, 1995 के प्रावधानों के मुताबिक स्पष्टीकरण मांगा था।
रिपोर्ट को मंजूरी के लिए एलजी भेजा जाना था। हालांकि इसमें जान बूझकर की गई देरी और उदासीन रवैये की वजह से देरी हुई और सरकार तीन साल तक इस रिपोर्ट पर बैठी रही। इसके बाद भी प्रशासनिक विभाग (प्रशासनिक सुधार) ने इसे तैयार करने में करीब एक वर्ष का समय लिया। आखिरकार मंत्री ने इसी साल 19 सितंबर को मुख्यमंत्री को एलजी के समक्ष इसे पेश करने के लिए भेजा। इसे 27 सितंबर को मुख्यमंत्री ने एलजी की मंजूरी के लिए भेजा।
तीन साल की अनुचित देरी के कारण फाइल पर अंतिम निर्णय लेने में देरी कर उचित नियम और सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया। एक व्यक्ति जिन्होंने अपना पूरा करियर सशक्त लोकपाल की मांग को लेकर आंदोलन किया जिसने अपना पूरा कॅरियर सशक्त लोकपाल बनाने के लिए एक राजनीतिक दल की मांग को लेकर आंदोलन किया। अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जवाबदेही, ईमानदारी और पारदर्शिता के ईद गिर्द घूमने वाली पार्टी ने जानबूझकर लोकपाल को कमजोर करना अवसरवादी राजनीति को प्रदर्शित करती है। उपराज्यपाल ने 16 वीं और 17वीं रिपोर्ट में विशेष रूप से पेश की गई बाधाओं के कारण हुई देरी पर