ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) के लिए ब्रिटेन की प्रतिबद्धता को दोहराया। उन्होंने कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ संबंधों को बढ़ाने को लेकर हम पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं और इसी के हिस्से के रूप में भारत के साथ नए एफटीए लाने पर विचार कर रहे हैं। सोमवार रात लंदन के लॉर्ड मेयर द्वारा आयोजित औपचारिक भोज के दौरान अपने भाषण में ऋषि सुनक ने अपनी विरासत पर विचार किया और कहा कि दुनिया भर में “स्वतंत्रता और खुलेपन” के ब्रिटिश मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए वे प्रतिबद्ध हैं। पिछले महीने 10 डाउनिंग स्ट्रीट में पदभार ग्रहण करने के बाद यह उनका प्रमुख विदेश नीति के संबंध में पहला भाषण था।
उन्होंने चीन के मामले में इन चीजों को अलग तरीके से करने की भी प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश मूल्यों और हितों के लिए यह एक प्रणालीगत चुनौती है। सुनक ने कहा कि राजनीति में आने से पहले मैंने दुनिया भर के व्यवसायों में निवेश किया और अब हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यह अवसर मिलना बड़ी बात है।
उन्होंने कहा कि 2050 तक, हिंद-प्रशांत यूरोप और उत्तरी अमेरिका के संयुक्त रूप से सिर्फ एक चौथाई की तुलना में आधे से अधिक वैश्विक विकास प्रदान करेगा। इसलिए हम ट्रांस-पैसिफिक ट्रेड डील में शामिल हो रहे हैं। सीपीटीपीपी (CPTPP) भारत के साथ एक नए एफटीए पर काम कर रहा दे रहा है और इसी तरह इंडोनेशिया के साथ भी एक समझौता किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि कई अन्य लोगों की तरह मेरे दादा-दादी पूर्वी अफ्रीका और भारतीय उपमहाद्वीप के रास्ते ब्रिटेन आए और यहां अपना जीवन व्यतीत किया। हाल के वर्षों में हमने हांगकांग, अफगानिस्तान और यूक्रेन से आए हजारों लोगों का स्वागत किया है। हम एक ऐसा देश हैं जो अपने मूल्यों के साथ खड़ा है, जो केवल शब्दों से नहीं बल्कि कार्यों से भी लोकतंत्र की रक्षा करता है।
चीन को लेकर सुनक ने कहा कि वह यूके के दृष्टिकोण को “विकसित” करना चाहते हैं। उन्होंने सात साल पहले ब्रिटेन-चीन द्विपक्षीय संबंधों का वर्णन करने करते हुए पिछली कंजरवेटिव पार्टी की अगुवाई वाली सरकार द्वारा इस्तेमाल किए गए नारे से अपनी सरकार को अलग कर दिया।
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि “अब यह स्पष्ट हो गया है कि तथाकथित स्वर्ण युग समाप्त हो गया है, इस भोले विचार के साथ कि व्यापार सामाजिक और राजनीतिक सुधार की ओर ले जाएगा। इसलिए हमें शीत युद्ध के बयानबाजी पर भरोसा नहीं करना चाहिए। हम मानते हैं कि चीन हमारे मूल्यों और हितों के लिए एक प्रणालीगत चुनौती पेश करता है, यह एक ऐसी चुनौती है जो अधिक तीव्र होती जाती है क्योंकि यह और भी अधिक अधिनायकवाद की ओर बढ़ती जा रही है।