
यूरोपियन कमीशन की अध्यक्ष उरसुला वॉन डेर लियेन के इस बयान से लगे सदमे से पश्चिमी देशों के लोग अभी नहीं उबरे हैं कि रूस के साथ युद्ध में यूक्रेन के एक लाख सैनिक और 20 हजार नागरिक मारे जा चुके हैं। ये मसला इतना बढ़ा कि वॉन डेर लियेन को अपना यह वक्तव्य वापस लेना पड़ा। लेकिन ये कोई ऐसी बात नहीं है, जिसे पहली बार कहा गया हो। अमेरिका के ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ (सेना प्रमुख) जनरल मार्क मिले ने अक्तूबर में ही न्यूयॉर्क इकॉनमिक क्लब में एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि युद्ध में एक लाख से अधिक रूसी सैनिक मारे गए हैं और संभवतः इतने ही यूक्रेनी सैनिक मारे गए हैं। लेकिन तब उस बयान पर इतना ध्यान नहीं दिया गया।
अमेरिकी थिंक टैंक सेंटर फॉर सिक्युरिटी पॉलिसी में सीनियर फेलॉ स्टीफन ब्रायन के मुताबिक यूक्रेन के सैनिकों की इतनी बड़ी संख्या में मौत की पुष्टि का मतलब यह धारणा बनना होगा कि पश्चिमी देश यूक्रेन में जो ‘प्रॉक्सी वॉर’ लड़ रहे हैं, वह मुश्किल में फंस गया है। पश्चिमी देशों- खास कर अमेरिका की कोशिश यह धारणा बनाए रखने की रही है कि युद्ध में यूक्रेन जीत रहा है। ब्रायन ने वेबसाइट एशिया टाइम्स पर लिखा है- ‘जबकि हकीकत इसके विपरीत है। यूक्रेन के पास सैनिकों की कमी हो रही है। युद्ध मैदान में वह हार रहा है, रूस योजनाबद्ध ढंग से उसके इन्फ्रास्ट्रक्चर को नष्ट कर रहा है, और लाखों यूक्रेनी नागरिक भाग कर विदेश चले गए हैं। अगर युद्ध तुरंत खत्म हो जाए, तब भी यूक्रेन इस विपदा से उबर पाएगा, इसकी संभावना कम है।’
रूस के सामने भी समस्याएं लेकिन यूक्रेन से कम
विश्लेषकों के मुताबिक समस्याएं रूस के सामने भी हैं, लेकिन वे यूक्रेन की तुलना में कम हैं। वह अपने सैनिकों की घटी संख्या नई भर्तियों के जरिए पूरा कर रहा है। जबकि यूक्रेन में उसे मदद पहुंचाने गए दूसरे देशों के ‘स्वयंसेवकों’ की बड़ी संख्या में मौत होने की खबर है। खुद पोलैंड ने स्वीकार किया है कि वहां से गए तकरीबन 1200 ‘स्वयंसेवक’ मारे जा चुके हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक यह सच्चाई सामने आने के बाद इस बात की संभावना काफी घट गई है कि पोलैंड अब अपने और सैनिक यूक्रेन भेजेगा।
अनिश्चित समय तक यूक्रेन की मदद नहीं कर सकेंगे यूरापीय देश
यूरोप के कई अन्य देश पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि उनके संसाधन सीमित हैं, इसलिए अनिश्चित समय तक यूक्रेन को मदद देना उनके लिए संभव नहीं होगा। अमेरिका से भी ऐसी खबरें आई हैं कि उसका हथियार भंडार चूक रहा है। ऐसे में यूक्रेन की मदद की उम्मीदें लगातार घटती जा रही हैं। ब्रायन ने लिखा है कि यूक्रेन सरकार लगातार अपने देश में सूचनाओं को सेंसर कर रही है। इसके बावजूद वहां हुए नुकसान की सच्चाई अब दुनिया के सामने आने लगी हैं। इसका पश्चिमी देशों की जन भावना पर विपरीत असर पड़ने का अंदेशा है।
रूस की रणनीति स्पष्ट
रूस की रणनीति संभवतः अब यूक्रेन के इन्फ्रास्ट्रक्चर को नष्ट कर वहां मुसीबत बढ़ाने की है। इसके जरिए वह यूरोपीय देशों का इम्तिहान भी लेना चाहता है, जहां महंगाई और ऊर्जा संकट के कारण यूक्रेन को मदद जारी रखने की नीति लगातार अलोकप्रिय होती जा रही है। विश्लेषकों का कहना है कि अगर यूक्रेन की हार तय हुई, तो उसका अमेरिका की घरेलू राजनीति पर भी गहरा असर होगा। खास कर इससे राष्ट्रपति जो बाइडेन की राजनीतिक संभावनाएं प्रभावित होंगी, जिन्होंने रूस को परास्त करने को अपना लक्ष्य बना रखा है।