
लखनऊ हाईकोर्ट के फरमान के बाद यूपी सरकार आरक्षण के चक्कर में फंस गई है। सोमवार को कोर्ट ने बिना आरक्षण के निकाय चुनाव कराने का आदेश दिया। इसके बाद विपक्ष ने सरकार को घेर लिया। ऐसे में सरकार मझधार में फंस गई है। एक्सपर्ट की मानें, तो बिना आरक्षण चुनाव कराना सरकार के लिए संभव नहीं है, क्योंकि इससे वोट बैंक खोने का खतरा है। जिसका असर आने वाले लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा।
एक्सपर्ट का मानना है कि सरकार के पास अब सिर्फ 2 ही विकल्प बचे हैं। पहला- वह सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाए। वहां से स्टे लेकर चुनाव करा दे। दूसरा- हाईकोर्ट के आदेश को मानते हुए कमेटी बनाए। हालांकि इसमें 2-3 महीने का समय लगेगा। जबकि हाईकोर्ट ने सरकार से जल्द से जल्द चुनाव कराने का आदेश दिया है।
19 जनवरी के बाद डीएम होंगे निकाय के मालिक
कोर्ट ने आदेश में कहा गया है कि तय समय के अंदर तक चुनाव नहीं होता है तो उसके बाद एक कमेटी बनेगी। डीएम , नगर आयुक्त और जिला स्तरीय अधिकारी इसके मेंबर होंगे। यूपी में मेयर और पार्षद कार्यकाल 19 जनवरी को समाप्त हो रहा है। ऐसे में अगर 19 जनवरी तक चुनाव नहीं होता है तो इसका नगर निगम का संचालन डीएम के यहां से होगा। मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए 19 जनवरी से पहले हल निकलता या चुनाव होता नहीं दिख रहा है।
बिना आरक्षण चुनाव कराया तो ये होगा नुकसान
यूपी में बिना आरक्षण चुनाव कराने से बीजेपी की राजनीति को बड़ा झटका लग सकता है। यूपी ओबीसी वोटर करीब 52 फीसदी है। ऐसे में उनकी यह नाराजगी निकाय चुनाव के साथ – साथ 2024 में होने से वाले लोक सभा चुनाव पर असर पड़ेगा। मौजूदा समय उप्र में बीजेपी का सबसे बड़ा वोट बैंक गैर यादव ओबीसी है। अगर यह नाराज होता है तो चुनाव परिणाम बीजेपी के खिलाफ जा सकता है। साल 2014 के बाद यह बीजेपी का सबसे बड़ा वोट बैंक है।