
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को कहा कि भारत ने यूक्रेन के जपोरीजिया परमाणु संयंत्र के आसपास स्थिति सामान्य बनाने का प्रयास किया और मास्को व कीव के बीच खाद्यान्न समझौते में खामोशी से मदद की। उन्होंने इन आरोपों को भी सिरे से खारिज कर दिया कि रूस से सस्ता तेल खरीदकर भारत युद्ध का फायदा उठा रहा है। जयशंकर ने रूसी कच्चे तेल की कीमतों की सीमा तय करने को पश्चिमी देशों का फैसला करार दिया जो भारत के साथ विचार-विमर्श के बिना लिया गया था।
उन्होंने कहा कि भारत स्वत: उन चीजों को स्वीकार नहीं कर सकता जिन्हें दूसरों ने तय किया है। आस्टि्रया के अखबार ‘डाई प्रेस’ को दिए साक्षात्कार में जयशंकर ने यूक्रेन संकट के बारे में एक सवाल के जवाब में स्थिति को सामान्य बनाने में योगदान देने के लिए तैयार होने का संकेत दिया। यह पूछे जाने पर क्या मध्यस्थता की मुख्य भूमिका तुर्किये पहले ही ले चुका है, जयशंकर ने कहा, ‘नहीं, लेकिन सवाल यह नहीं है कि मध्यस्थता का श्रेय किसे मिलता है और कौन सुर्खियां बटोरता है।’
रूस-यूक्रेन युद्ध का भारत नहीं उठा रहा फायदा
रूस से भारत द्वारा सस्ती दर पर ऊर्जा खरीद से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा कि वह इस बात को राजनीतिक रूप से और गणितीय रूप से भी खारिज करते हैं कि भारत युद्ध का फायदा उठा रहा है। उन्होंने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण तेल की कीमतें दोगुनी हो गई हैं और तेल बाजार पर ईरान पर लगे प्रतिबंध और वेनेजुएला में होने वाले घटनाक्रमों का भी असर पड़ता है। जब उनसे पूछा गया कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन के विरुद्ध रूस के आक्रामण की निंदा करने वाले प्रस्ताव का समर्थन क्यों नहीं किया तो जयशंकर ने कहा कि प्रत्येक देश घटनाओं का आकलन अपनी स्थिति, हितों और इतिहास के अनुसार करता है।
कोई भी क्षेत्र स्थिर नहीं रहेगा अगर उसमें किसी एक ताकत का प्रभुत्व होगा: जयशंकर
एशिया में ऐसी भी घटनाएं हुई हैं जब यूरोप या लैटिन अमेरिकी देशों ने कोई रुख अपनाना जरूरी नहीं समझा। यूक्रेन में जो कुछ हुआ वह यूरोप के ज्यादा करीब है। इसके अलावा रूस हमेशा भारत का मददगार देश रहा है। यह पूछे जाने पर कि क्या चीन का उभार और उसकी ताकत में वृद्धि हिंद-प्रशांत के लिए बड़ी चुनौती है, विदेश मंत्री ने कहा कि कोई भी क्षेत्र स्थिर नहीं रहेगा अगर उसमें किसी एक ताकत का प्रभुत्व होगा।