
फर्जी डॉक्टर डिग्री मामले में पुलिस ने भारतीय चिकित्सा परिषद के तीन कर्मचारियों को गिरफ्तार किया है। इसमें से एक कर्मचारी कनिष्क सहायक और दो वैयक्तिक सहायक पर तैनात थे। तीनों ने इमलाख के साथ मिलकर फर्जी डिग्रियां बांटी और रजिस्ट्रेशन कराए।
तीनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया है। विदित है कि एसटीएफ ने 10 जनवरी को प्रदेश में चल रहे फर्जी डॉक्टर रैकेट का खुलासा किया था। उस समय दो फर्जी डॉक्टर और फर्जी डिग्री का मास्टरमाइंड इमलाख के भाई को गिरफ्तार किया था। शुरुआत जांच में यह पता चला है कि इमलाख ने अपने भाई के साथ मिलकर प्रदेश के कुल 36 लोगों को कर्नाटक के एक विश्वविद्यालय की डिग्रियां आठ से दस लाख में बेची हैं।
इसके बाद मामला दून पुलिस को सौंप दी गई । जिसके बाद से दून पुलिस लगातार इस मामले में गिरफ्तारियां कर रही है। डीआईजी, एसएसपी दलीप कुंवर ने पुलिस कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में भारतीय चिकित्सा परिषद के तीन कर्मचारियों की गिरफ्तारी का खुलासा करते हुए बताया कि जांच में यह बात सामने आई थी कि फर्जी डिग्री में भारतीय चिकित्सा परिषद के कुछ कर्मचारियों की संलिप्तता भी है।
परिषद का रिकॉर्ड खंगालने के साथ ही की कर्मचारियों से पूछताछ
लिहाजा पिछले कुछ दिनों से पुलिस टीम परिषद का रिकॉर्ड खंगालने के साथ ही कर्मचारियों से पूछताछ कर रही थी। एसएसपी ने बताया कि शक होने पर थना नेहरू कॉलोनी पुलिस ने परिषद के तीन कर्मचारियों विवेक रावत, अंकुर महेश्वरी और विमल प्रसाद को पूछताछ के लिए बुलाया था। अपने बयानों में तीनों ने इमलाख के साथ मिलकर फर्जी डिग्रियां बांटने और रजिस्ट्रेशन किए जाने की बात कबूली। जिसके बाद पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर लिया।
आरोपियों में कनिष्ठ सहायक विमल बिजल्वाण निवासी गली नंबर 8 फेस -2 सिद्ध विहार लोअर नेहरूग्राम, मूल निवासी ग्राम बागी पट्टी बमुंडा जनपद टेहरी गढ़वाल कनिष्ठ सहायक, अंकुर महेश्वरी निवासी हरीपुर नवादा थाना नेहरू कॉलोनी जनपद देहरादून, मूल पता- सिकंदराराऊ थाना-सिकंदराराऊ जिला हाथरस उत्तर प्रदेश, विवेक रावत निवासी 183 ऑफिसर्स कॉलोनी रेस कोर्स देहरादून, मूल पता- ग्राम अजनर थाना- अजनर जिला महोबा उत्तर प्रदेश वैयक्तिक सहायक के पद पर भारतीय चिकित्सा परिषद में तैनात थे।
प्रति वैरिफिकेश व एनओसी के हिसाब से तीनों लेते थे पैसा
प्रति वैरिफिकेशन और एनओसी के इमलाख से लेते थे 60 हजार रुपयेदेहरादून। इमलाख किसी को बीएएमएस की डिग्री देने के बाद चिकित्सा परिषद में रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन करता था। सम्बंधित इंस्टीट्यूट के प्रमाण पत्र, लिफाफे आदि वह सीधे तीनों को उपलब्ध कराता था। जिस पर आरोपी ही पत्राचार, पता इत्यादि का अंकन, पृष्ठांकन स्वयं करते थे। इसके बाद रजिस्ट्रेशन की प्रति स्वयं ही इमलाख को उपलब्ध करा देते थे।
परिषद में सारे कागज इमलाख इन्हीं के माध्यम से कागज जमा कराता था। इसके बाद तीनों ही वैरिफिकेशन फाइल तैयार कर जिस यूनिवर्सटी की डिग्री होती थी, उस यूनिवर्सिटी के लिए एवं जिस राज्य की डिग्री होती थी, उस बोर्ड में भी वैरफिकेशन के लिए फाइल डाक से भेजते थे। प्रति वैरिफिकेश व एनओसी के हिसाब से तीनों 60,000 रुपये इमलाख से लेते थे। जिसे वह आपस में बांंट लेते थे।
फर्जी एनओसी के आधार पर करते थे रजिस्ट्रेशन
आरोपियों ने बताया कि जो वैरिफकेशन की फाइल में वह कुछ न कुछ कमी रखते थे। जिससे यूनिवर्सिटी वाले उक्त फाइल को वापस नही करते थे। डाक से भेजने के कुछ दिन बाद इमलाख कर्नाटक, बिहार और राजस्थान आदि स्थानों पर जाता था और फिर इमलाख कूटरचित तरीके से फर्जी एनओसी तैयार करवाता था। जिसे वह उसी यूनिवर्सिटी के बाहर तथा उसी राज्य से वापस चिकित्सा परिषद के लिए डाक से पोस्ट करता था और जब यही फाइल चिकित्सा परिषद देहरादून में पहुंचती थी तो उस फर्जी एनओसी के आधार पर ही वह उनका रजिस्ट्रेशन चिकित्सा परिषद में करवा देते थे।