
उत्तराखंड में नकली दवाओं के सौदागरों को नेटवर्क टूट नहीं रहा है। लगातार कार्रवाई के बाद भी ये लोग जनता की जान से खिलवाड़ करने से बाज नहीं आ रहे। तीन साल के दरम्यान 50 से ज्यादा लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए हैं।
20 से ज्यादा गोदाम और बंद पड़ीं फैक्टरियों पर छापा मारा गया है। बावजूद इसके अभी तक मामले सामने आ रहे हैं। इसे लेकर सरकार भी कई बार चिंता जाहिर कर चुकी है, मगर इस धंधे पर नकेल कसने के लिए स्थायी हल नहीं निकल पा रहा है।
ताजा मामला सहसपुर क्षेत्र का है। लेकिन, इसका गढ़ हरिद्वार क्षेत्र को माना जाता है। मंगलौर और इससे सटे इलाकों में कई फैक्टरियां और गोदाम बंद हो चुके हैं। इन्हीं का फायदा उठाकर नकली दवाओं के ये सौदागर यहां चोरी-छिपे कारोबार करते हैं।
तीन साल पहले एसटीएफ ने इन पर कार्रवाई शुरू की तो नेटवर्क सहारनपुर और इसके आसपास के जिलों में भी फैला मिला। हरिद्वार के इन क्षेत्रों में एसटीएफ और स्थानीय पुलिस 20 से ज्यादा गोदामों में छापा मार चुकी है। ज्यादातर जगहों पर नकली दवाओं को असली दवाओं के रैपर में भरकर बेचा जा रहा था।
ड्रग विभाग के पास एक चौथाई इंस्पेक्टर
ये तो सिर्फ पुलिस कार्रवाई के आंकड़े हैं। इसकी असल जिम्मेदारी ड्रग विभाग की होती है। ड्रग विभाग इस तरह की दवाओं के कारोबार की निगरानी करता है। लेकिन, ड्रग विभाग के पास लंबे समय से इंस्पेक्टरों की कमी बनी हुई है। मौजूदा समय में ड्रग विभाग के पास 40 इंस्पेक्टर होने चाहिए। मगर, केवल नौ इंस्पेक्टरों से ही काम चलाया जा रहा है। अब विभाग की यह इतनी सी फौज न तो निगरानी कर पा रही है और न ही कार्रवाई। नतीजा प्रदेश में नकली दवाओं का धंधा फल फूल रहा है।