
राज्य उपभोक्ता आयोग ने मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल देहरादून को गलत ऑपरेशन करने पर मरीज अजय कुमार शर्मा को सात लाख रुपये क्षतिपूर्ति के बतौर भुगतान करने का आदेश दिया है।
शर्मा की पित्ताशय की थैली हटाने के लिए वर्ष 2016 में सर्जरी हुई, लेकिन पूरे अंग को हटाए और तथ्यों का उल्लेख किए बगैर अस्पताल ने उन्हें छुट्टी दे दी। ऐसे में शर्मा को दर्द होने के साथ ही अन्य जटिलताएं पेश आईं। यही नहीं, आगरा और दिल्ली में दो और सर्जरी करानी पड़ीं।
आयोग ने पाया कि डिस्चार्ज सारांश में तथ्यों को छिपाना मैक्स अस्पताल के डाक्टर की सेवा में कमी है। सर्जरी के साथ-साथ आपरेशन के बाद की देखभाल भी सही नहीं की गई। डाक्टर ने भी पूरी पित्ताशय और पथरी न निकालने के संबंध में भौतिक तथ्यों को छिपाया।
आयोग ने लापरवाह डाक्टर और अस्पताल को 30 दिनों के भीतर 10,000 रुपये की मुआवजा राशि और मुकदमा खर्च का भुगतान करने का आदेश दिया। ऋषिकेश निवासी अजय ने कहा कि तीन अगस्त 2016 को मैक्स अस्पताल में उनकी सर्जरी के दो दिन बाद उन्हें छुट्टी दे दी गई थी, लेकिन अगले ही दिन उन्हें तेज दर्द होने लगा और सर्जरी के कारण घाव से कुछ गंदा पानी रिसने लगा।
फिर वह अपने गृहनगर फिरोजाबाद चले गए लेकिन वहां कोई राहत नहीं मिली। 16 अगस्त 2016 को आगरा के एक अस्पताल में उनकी एक और सर्जरी हुई, जिसके दौरान उनके पेट में लगभग दो लीटर तरल पदार्थ पाया गया। दो महीने के बाद एक इमेजिंग सेंटर में गए तो पाया कि पित्ताशय को हटाया नहीं गया था। मानसिक और शारीरिक के साथ-साथ आर्थिक नुकसान झेलने के बाद अजय शर्मा ने नवंबर 2016 में डाक्टर और मैक्स अस्पताल को कानूनी नोटिस भेजा। मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया और उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल को भी लापरवाही के बारे में सूचित किया गया।
इस बीच उन्होंने फिर से दर्द की शिकायत की। पित्ताशय को पूरी तरह से हटाने के लिए नवंबर 2017 में दिल्ली के एक अस्पताल में एक और सर्जरी की आवश्यकता पड़ी। उन्होंने फरवरी 2018 में उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कराई। मेडिकल रिपोर्टों की समीक्षा करने के बाद आयोग ने पाया कि तथ्यों को छुपाया गया था। सर्जरी में कोई समस्या थी तो इसे डिस्चार्ज कार्ड में दर्शाया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं किया गया और पोस्ट-आपरेटिव देखभाल सही नहीं थी।
आयोग की न्यायिक सदस्य कुमकुम रानी व सदस्य बीएस मनराल की पीठ ने आदेश पारित कर कहा कि डिस्चार्ज सारांश में वास्तविक तथ्यों को छिपाना और पित्ताशय व पथरी को पूरा न निकालना चिकित्सकीय लापरवाही तथा डाक्टर व अस्पताल की ओर से सेवा में कमी है। चूंकि, मरीज को विभिन्न सर्जरी के कारण वित्तीय नुकसान हुआ है, इसलिए वह सात प्रतिशत ब्याज के साथ सात लाख रुपये और केस की लागत के रूप में 10,000 रुपये बतौर क्षतिपूर्ति दी जाए।