पांच राज्यों के चुनावों की तारीखों का एलान होते ही सभी दल और नेता अपने अपने दावों वादों और इरादों के साथ मैदान में डट गए हैं। चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों ने भी माहौल बनाना शुरू कर दिया है। इन चुनावों को अगले साल अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल भी कहा जा रहा है। हालांकि, हर चुनाव की परिस्थिति मुद्दे और मतदाताओं की मानसिकता अलग अलग होती है, लेकिन फिर भी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव विशेषकर उत्तर भारत के तीनों राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ को उन मुद्दों का ट्रायल रन जरूर माना जा सकता है, जिनको धार देकर सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी गठबंधन इंडिया विशेषकर कांग्रेस लोगों के बीच जा रही है, क्योंकि अक्सर जब विपक्षी इंडिया गठबंधन से पूछा जाता है कि अगले लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने उसका नेता कौन होगा, तो जवाब आता है कि वो मोदी के मुकाबले मुद्दों को लेकर मैदान में उतरेंगे।

इन चुनावों में भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है, इसलिए भाजपा के महिला आरक्षण कानून और कांग्रेस के जातीय जनगणना और पिछड़ा कार्ड की पहली परीक्षा इन विधानसभा चुनावों में ही होगी। साथ ही भाजपा ने इन चुनावों में राज्यों के किसी नेता के भरोसे नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और चेहरे के सहारे लड़ना तय किया है, इसलिए लोकसभा चुनावों से पहले हो रहे इन विधानसभा चुनावों में मोदी बनाम मुद्दे का यह पहला ट्रायल रन साबित हो सकता है।
इन विधानसभा चुनावों से पहले ही कांग्रेस ने जातीय जनगणना का अपना कार्ड चल दिया है और राहुल गांधी लगातार जिस तरह पिछड़ों दलितों और आदिवासियों के लिए उनकी संख्या के हिसाब से उनकी हिस्सेदारी तय करने की बात हर जनसभा में कह रहे हैं और उनकी इस बात को न सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और प्रियंका गांधी समेत सभी नेता हर सभा में दोहरा रहे हैं, बल्कि छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जातीय जनगणना कराने का वादा दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने किया है और कांग्रेस कार्यसमिति ने अपना प्रस्ताव पारित करके इस पर मुहर लगा दी है।
अब यह मुद्दा कांग्रेस के लिए चुनावी मुद्दा बन गया है। भाजपा नारी शक्ति वंदन अधिनियम के जरिए महिलाओं के लिए संसद व विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण को मुद्दा बना रही है, लेकिन कांग्रेस ने इसमें भी पिछड़ों के लिए अलग से कोटा तय करने की मांग जोड़ कर अपने पिछड़े कार्ड को और धार दे दी है। भाजपा जातीय जनगणना को हिंदुओं को बांटने की साजिश करार दे रही है, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संख्या के हिसाब से हक देने की बात को अल्पसंख्यकों के हक को खत्म करने से जोड़ कर कांग्रेस को घेरने की कोशिश की है, लेकिन कांग्रेस अपने मुद्दे को लगातार धार दे रही है।
मुद्दों के अलावा इस बार जिस तरह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा ने बिना कोई चेहरा दिए पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे और लोकप्रियता पर लड़ना तय किया है, इसस ये चुनाव मोदी की लोकप्रियता की भी अग्निपरीक्षा बनते जा रहे हैं। पिछली बार भले प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे जोरशोर से प्रचार किया था, लेकिन तब मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ में रमन सिंह और राजस्थान में वसुधरा राजे की सरकारें थीं और उनके चेहरे भी थे।
इसलिए इन राज्यों में पार्टी की हार का ठीकरा इन तीनों की विफलताओं पर फूट गया था, लेकिन इस बार सीधी तौर पर मोदी का मुकाबला कमलनाथ, भूपेश बघेल और अशोक गहलौत के अलावा राहुल गांधी और खरगे से भी है, क्योंकि जहां मध्य प्रदेश में कांग्रेस के कमलनाथ के मुकाबले मोदी का नाम लेगी, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के भूपेश बघेल के मुकाबले भाजपा मोदी को आगे रखेगी और राजस्थान में कांग्रेस के अशोक गहलौत के मुकाबले भी भाजपा का सहारा मोदी ही होंगे। फिर कांग्रेस की तरफ खरगे राहुल और प्रियंका भी मोदी को ही निशाने पर रखेंगे। यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लड़ाई तीनों राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के छत्रपों और शीर्ष नेताओं से होगी।इसलिए इन तीनों राज्यों के नतीजों को भी मोदी की लोकप्रियता की कसौटी का पैमाना माना जाएगा।
हालांकि, 2018 में जब मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हुए तब उन तीनों राज्यों में भाजपा की सरकारें थीं और ये तीनों राज्य कांग्रेस ने भाजपा से जीते थे, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के दलबदल की वजह से मध्य प्रदेश में भाजपा ने डेढ़ साल बाद अपनी सरकार फिर बना ली थी, इसलिए इस बार भी भाजपा के सामने वही चुनौतियां हैं जो पिछली बार थीं। यानी पहला सवाल कि क्या शिवराज सिंह चौहान पार्टी का चेहरा होंगे या नहीं।
शिवराज सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान का मुकाबला पार्टी किस तरह करेगी और अगर शिवराज उसका चेहरा नहीं हैं तो फिर भाजपा का अगले मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का चेहरा कौन होगा। भाजपा ने इन चुनौतियों से मुकाबले के लिए ही एक तरफ लंबे इंतजार के बाद शिवराज सिंह चौहान को बुधनी से फिर से चुनाव मैदान में उतार तो दिया है, लेकिन उनकी उम्मीदवारी से पहले तीन मंत्रियों एक महासचिव समेत सात सांसदों को उतारकर ये संदेश भी दे दिया कि इस बार पार्टी मुख्यमंत्री पद के लिए कोई एक नाम या चेहरा नहीं दे रही है। दिग्गजों को मैदान में उतारकर पार्टी ने संगठन की गुटबाजी पर भी लगाम लगाने की कोशिश की है।
करीब 18 साल से राज्य में सत्ता पर काबिज रही अपनी सरकार के खिलाफ किसी भी तरह की नाराजगी को कमजोर करने के लिए भाजपा ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को ही अपना चेहरा बना कर पार्टी के चुनाव निशान कमल को आगे कर दिया है।उम्मीदवारों की घोषणा में कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए भाजपा ने अपनी तीन सूचियां जारी कर दी हैं।
उधर कांग्रेस ने अपनी राजनीतिक शैली के अनुरूप किसी नाम और चेहरे की घोषणा नहीं की है, लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में पूरा चुनाव जिस तरह लड़ा जा रहा है उससे स्पष्ट है चुनाव जीतने पर कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री कमलनाथ ही होंगे। सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद कमलनाथ को अब राज्य में कोई चुनौती भी नहीं है, क्योंकि दूसरे बड़े नेता दिग्विजय सिंह खुद को काफी पहले मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर कर चुके हैं।इस बार कांग्रेस में गुटबाजी की खबरें न के बराबर आ रही हैं, और कांग्रेस अपनी सरकार गिराए जाने को मुद्दा बनाकर जनता की सहानुभूति बटोरना चाहती है।चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों के मुताबिक ग्वालियर चंबल संभाग और विंध्य एवं बुंदेलखंड क्षेत्र में उसे इसका लाभ मिलता भी दिख रहा है।लेकिन महाकौशल और मालवा निमाड़ क्षेत्र में उसकी भाजपा के साथ कांटे की टक्कर है जबकि भोपाल क्षेत्र में भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है।
राजस्थान में भी भाजपा 41 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर चुकी है, जिसमें अभी तक वसुंधरा राजे समर्थकों को जगह नहीं मिली है। पार्टी ने यहां भी अपने कुछ सांसदों को मैदान में उतार दिया है। जिनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन राठौर और जयपुर राजघराने की राजकुमारी सांसद दिया कुमारी भी शामिल हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को चुनाव की कमान न सौंप कर भाजपा ने यहां भी सामूहिक नेतृत्व और नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। भाजपा राज्य में गहलौत सरकार के कामकाज, विधायकों से नाराजगी और कांग्रेस में गहलौत पायलट गुटबाजी का फायदा उठाना चाहती है। उधर अशोक गहलोत ने पिछले करीब डेढ़ साल से कई तरह की लोकलुभावन योजनाओं के जरिए लोगों का विश्वास जीतने की पूरी कोशिश की है। सचिन पायलट से फिलहाल उनका संघर्ष विराम है। उन्हें भरोसा है कि उनकी इन कल्याणकारी योजनाओं की वजह से राज्य की जनता फिर उन पर भरोसा जताएगी और कांग्रेस फिर सरकार बनाएगी। कांग्रेस ने भले ही यहां भी यह घोषणा नहीं की है कि सरकार अगर बनी तो कौन मुख्यमंत्री होगा, लेकिन जिस तरह पूरा चुनाव अशोक गहलौत के नाम काम और चेहरे पर केंद्रित हो गया है इससे साफ है कि कांग्रेस अगर जीती तो गहलौत ही फिर मुख्यमंत्री बनेंगे।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का पूरा चुनाव अभियान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नाम चेहरे और रणनीति के इर्द गिर्द है। राज्य के दूसरे बड़े नेता और मुख्यमंत्री पद के दावेदार टीएस सिंहदेव बाबा को उपमुख्यमंत्री बनाकर संतुष्ट कर दिया गया है। जिस तरह पूरे पांच साल भाजपा ने यहां भूपेश सरकार के खिलाफ किसी तरह का न कोई आंदोलन किया और न ही पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह सक्रिय रहे, उससे भाजपा शुरुआती दौर में पिछड़ती दिख रही थी, लेकिन हाल ही में उम्मीदवारों की सूची जारी करके, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभाओं ने पार्टी में जान डालने का काम किया है। यहां भी भाजपा बिना किसी चेहरे के चुनाव लड़ रही है। यहां भी पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम लोकप्रियता और पार्टी निशान को लेकर सामूहिक नेतृत्व के नारे के साथ मैदान में है।कांग्रेस को अगर बघेल सरकार की किसान आदिवासी और युवा कल्याण योजनाओं के बलबूते पर जीत का भरोसा है तो भाजपा सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों और नरेंद्र मोदी सरकार की उपलब्धियों को मुद्दा बना रही है।