
त्वरित इंसाफ सुनिश्चित करने और तंत्र को जवाबदेह बनाने के लिए आपराधिक कानूनों में संशोधन से जुड़े तीन अहम विधेयकों पर बुधवार को लोकसभा ने मुहर लगा दी। इन विधेयकों में भीड़ हिंसा और नाबालिग से दुष्कर्म में फांसी की सजा का प्रावधान है। ट्रायल अदालतों को एफआईआर दर्ज होने के तीन साल में हर हाल में सजा सुनानी होगी। राजद्रोह को खत्म कर, उसकी जगह देशद्रोह को शामिल किया गया है। अपराध कर विदेश भाग जाने वाले या कोर्ट में पेश न होने वालों के खिलाफ उसकी अनुपस्थिति में सुनवाई होगी। सजा भी सुनाई जा सकेगी।
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साध्य अधिनियम विधेयकों पर मंगलवार को चर्चा का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, हम हर मामले में गुलामी से मुक्ति चाहते हैं।
सामान्य लोगों को न्याय दिलाने के लिए इससे जुड़ी प्रक्रिया को पारदर्शी और जवाबदेह बनाना चाहते हैं। हम नहीं चाहते कि न्याय पाने के लिए आजादी के बाद से जारी तारीख पर तारीख की परंपरा जारी रहे। हम नहीं चाहते कि जिन राजद्रोह कानून के आधार पर महात्मा गांधी, तिलक समेत कई स्वतंत्रता सेनानी वर्षों तक जेल में रहे, उसे बरकरार रखा जाए। नए कानून मानव केंद्रित होंगे। मोदी सरकार के कार्यकाल में भीड़ पर खूब राजनीति हुई। हिंसा पर । राजनीति करने वाले सत्ता में थे, तब कानूनी प्रावधान नहीं किए। यह काम मोदी सरकार ने किया।