
आज सदियों की प्रतीक्षा पूरी होगी। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होते ही 22 जनवरी, 2024 इतिहास में दर्ज हो जाएगी। अयोध्या में जय-जय राम, जय सियाराम की गूंज विराम लगाएगी…मिहिर कुल, सालार मसूद, बाबर, औरंगजेब जैसे आक्रांताओं के सनातन आस्था पर हमलों और अंग्रेजों की कूटनीति से इस मुद्दे पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संघर्ष पर। मरहम लगाएगी इन हमलों से मिले घावों पर। सैकड़ों साल के संघर्ष से शांति मिलेगी अयोध्या को। इस अद्भुत, अद्वितीय, अलौकिक अनुष्ठान के सशरीर गवाह बनने वालों के साथ इसे देखने और इसके अनुष्ठानों से जुड़ने वाले सांस्कृतिक अनुष्ठान के संदेशवाहक बनेंगे।
जिन संघर्षों व परिस्थितयों में रामलला का नया घर बना, वह सिर्फ एक मंदिर भर रहने वाला नहीं। न्यायालय के निर्णय से सनातन धर्मावलंबियों की इच्छाओं का साकार स्वरूप लेता यह मंदिर प्रतीक होगा संघर्ष, आंदोलन, समझौते से ऊपर सांविधानिक संस्थाओं पर देशवासियों के अटूट भरोसे का। जाति व क्षेत्रवाद के मुकाबले संस्कृति के सरोकारों की शक्ति का। वसुधैव कुटुंबकम और सर्वे भवंतु सुखिन: की ताकत का। विध्वंस पर निर्माण और संहार पर सृजन की जीत का। कुछ अपवादों को छोड़ पूरा देश इस अनुष्ठान से जुड़ा है। शैव, वैष्णव, शाक्त, रामानंदी से लेकर विभिन्न अखाड़े व सिख, जैन, बौद्ध धर्माचार्य भी अयोध्या आए हैं। मुस्लिम भी उत्सुक हैं, यह महत्वपूर्ण है।
देश में उत्सव-सा माहौल है। लोगों में उल्लास है। मॉरीशस और नेपाल में अनुष्ठान हो रहे हैं। विदेश में रहने वाले भारतवंशियों ने पूजन व भोग सामग्री भेजी है, वह दुनियाभर के सनातनियों और सनातन संस्कृति को समझने वाले के राम के सरोकारों से जुड़े होने का प्रतीक है। दुनियाभर में हो रहे अनुष्ठान त्रेता युग के राम की उत्तर से दक्षिण को जोड़ने की शक्ति बताने को पर्याप्त हैं। जातियों के खांचों से निकालकर राष्ट्र की पहचान से जोड़ने की क्षमता का प्रतीक हैं।
वैसे तो प्राण-प्रतिष्ठा धार्मिक आयोजन है, इसलिए राजनीतिक निहितार्थों पर नजर डालना उचित नहीं लगता। पर, जिस राम का राज्य आज भी राजनीति का मानक माना जाता हो, जिसकी जन्मभूमि की मुक्ति के आंदोलन की पृष्ठभूमि और घटनाएं राजनीति के ही इर्द-गिर्द घूमती रही हों, तब एक दशक पहले तक असंभव माने जाने वाले अनुष्ठान के राजनीतिक सरोकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती। वह भी तब, जब अयोध्या चार दशक से देश की राजनीति के केंद्र में रही हो। राजनेताओं ने जिसे सियासी समीकरणों को साधने के लिए मथानी सा प्रयोग किया हो, उस अयोध्या की संघर्ष से शांति की यात्रा में कुछ न कुछ नजर इस तरफ भी जाना लाजिमी है।