ज्ञानवापी परिसर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) का एक बार फिर सर्वे हो सकता है। ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और हिंदुओं को पूजा-पाठ करने का अधिकार देने को लेकर स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से पं. सोमनाथ व्यास व अन्य द्वारा 15 अक्टूबर, 1991 को दाखिल मुकदमे में सिविल जज (सीनियर डिवीजन) फास्ट ट्रैक कोर्ट एएसआइ सर्वे का आदेश पहले ही दे चुका है।
हाई कोर्ट ने हाल ही में आदेश को चुनौती देने वाली मस्जिद पक्ष की याचिकाएं खारिज कर दी थीं। स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर का मुकदमा कोर्ट में लंबित है। इसमें कहा गया है कि विवादित स्थल विश्वेश्वर मंदिर का अंश है। हिंदुओं को उक्त स्थल पर पूजा-पाठ, दर्शन-पूजन एवं अन्य धार्मिक कार्य करने का अधिकार है।
विवादित ढांचा के नीचे ज्योर्तिलिंग और उनका अर्घा विद्यमान है। पं. सोमनाथ व्यास की सात मार्च, 2000 को मृत्यु के बाद मुकदमे में उनके स्थान पर पैरवी करने के लिए अदालत ने 11 अक्टूबर, 2018 को पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी को वादमित्र नियुक्त किया था।
उन्होंने अयोध्या की तरह ज्ञानवापी परिसर एवं विवादित स्थल का भौतिक एवं पुरातात्ति्वक दृष्टि से एएसआइ सर्वे कराने की अदालत से अपील की थी। सिविल जज (सीनियर डिवीजन) फास्ट ट्रैक कोर्ट आशुतोष तिवारी ने आठ अप्रैल, 2021 को पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया था।
इस आदेश के खिलाफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद की ओर से इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की गई थी। उनकी ओर से प्लेसेज आफ वर्शिप एक्ट 1991 का हवाला देते हुए मस्जिद पर किसी प्रकार के दावे और मामले की पोषणीयता पर सवाल खड़े किए गए थे।हाई कोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में उनकी अपील खारिज करते हुए मां श्रृंगार गौरी मुकदमे में दाखिल एएसआइ सर्वे रिपोर्ट की कापी अदालत और मुकदमे के वादमित्र रस्तोगी को सौंपने का आदेश दिया था। हाई कोर्ट ने आदेश में कहा था कि सर्वे रिपोर्ट को पढ़ने के बाद वादमित्र को लगता है कि ज्ञानवापी में और सर्वे होना चाहिए तो निचली अदालत इसका आदेश दे सकती है।