दिल्ली विधानसभा चुनाव 5 फरवरी को होने हैं, और नतीजे 8 फरवरी को घोषित होंगे। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राजधानी में राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। हर पार्टी अपनी रणनीति के तहत हर सीट पर जोर दे रही है, और इनमें से कुछ सीटें खास चर्चा का विषय बन चुकी हैं। ओखला विधानसभा सीट भी ऐसी ही एक महत्वपूर्ण और विवादित सीट है। यहां से आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर मौजूदा विधायक अमानतुल्लाह खान को टिकट दिया है, जबकि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने अभी तक अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान नहीं किया है।

दिल्ली को विधानसभा मिलने की कहानी 1952 से शुरू होती है। उस साल दिल्ली को पार्ट-सी राज्य के रूप में एक विधानसभा मिली थी, जिसमें 48 सदस्य थे। यह विधानसभा मुख्य आयुक्त को कार्यों में सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद का गठन करने की शक्ति देती थी। हालांकि, 1956 में दिल्ली को भाग-सी राज्य से हटा दिया गया और दिल्ली विधानसभा को समाप्त कर दिया गया। इसके बाद दिल्ली राष्ट्रपति के प्रत्यक्ष प्रशासन के तहत केंद्र शासित प्रदेश बन गई।
1966 में दिल्ली प्रशासन अधिनियम के तहत एक महानगर परिषद बनाई गई, जिसमें 56 निर्वाचित सदस्य और 5 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्य होते थे। हालांकि, दिल्ली में लोकतांत्रिक व्यवस्था और जिम्मेदार प्रशासन की मांग लगातार बढ़ रही थी। इसी क्रम में, 1987 में भारत सरकार ने सरकारिया समिति (जिसे बाद में बालकृष्णन समिति कहा गया) का गठन किया। समिति ने 1989 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और सिफारिश की कि दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बने रहना चाहिए, लेकिन उसे एक विधानसभा दी जानी चाहिए जो आम आदमी से जुड़े मामलों को संभाल सके।
बालकृष्णन समिति की सिफारिशों के आधार पर, संसद ने संविधान (69वां संशोधन) अधिनियम, 1991 पारित किया, जिसमें दिल्ली के लिए एक विधानसभा की व्यवस्था की गई, लेकिन लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि जैसे मामलों पर विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार नहीं था। 1992 में परिसीमन के बाद, 1993 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए, और दिल्ली को एक निर्वाचित विधानसभा और विधायक मिले। इस प्रकार, दिल्ली को विधानसभा मिलने की प्रक्रिया पूरी हुई।