
उत्तराखंड के चमोली जिले में एक बड़ा हादसा हुआ है, जब एक ग्लेशियर टूटकर बह गया और इससे बीआरओ (सीमा सड़क संगठन) के कैंप को भारी नुकसान हुआ। इस घटना में वहां मौजूद 57 मजदूरों की जान खतरे में पड़ गई, हालांकि, अब तक किसी के हताहत होने की खबर नहीं है। यह हादसा चमोली जिले के एक संवेदनशील क्षेत्र में हुआ, जहां बीआरओ के कैंप में सड़कों के निर्माण के कार्य में जुटे हुए मजदूरों का दल तैनात था।सूत्रों के मुताबिक, सुबह के समय अचानक ग्लेशियर के टूटने से आसपास के क्षेत्र में बर्फीले पानी की तेज धारा बहने लगी, जिससे बीआरओ के कैंप और आस-पास के इलाकों में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गए। राहत कार्यों के लिए स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने तुरंत मौके पर पहुंचकर बचाव अभियान शुरू किया। बीआरओ के कैंप में तैनात मजदूरों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया, और अन्य सभी जरूरी उपाय किए गए ताकि किसी को कोई बड़ा नुकसान न हो।चमोली जिले में यह क्षेत्र पहले भी हिमस्खलन और ग्लेशियर की घटनाओं के लिए जाना जाता है, लेकिन इस तरह का हादसा इस क्षेत्र में काफी दुर्लभ है। विशेषज्ञों के अनुसार, ग्लेशियरों के टूटने और बर्फीले पानी के बहाव की घटना जलवायु परिवर्तन के कारण और अधिक बढ़ सकती है, जिससे इस तरह की घटनाओं का जोखिम बढ़ सकता है। हालांकि, यह घटना अचानक और अप्रत्याशित थी, जिससे स्थानीय प्रशासन को स्थिति से निपटने में कुछ समय लगा।बीआरओ के अधिकारियों ने बताया कि कैंप में तैनात सभी 57 मजदूरों को सुरक्षित निकाल लिया गया है और फिलहाल किसी भी कर्मचारी को गंभीर चोटें नहीं आई हैं। साथ ही, प्रशासन ने प्रभावित क्षेत्र में राहत कार्य तेज कर दिए हैं और इलाके को अस्थायी रूप से खाली करा लिया है। इसके साथ ही, स्थानीय प्रशासन ने बीआरओ और अन्य बचाव दलों के साथ मिलकर, संभावित खतरे को देखते हुए आसपास के इलाकों में भी सर्तकता बढ़ा दी है।चमोली जिले के इस क्षेत्र में मौसम खराब होने के कारण राहत कार्यों में थोड़ी दिक्कतें आई हैं, लेकिन प्रशासन ने रात दिन एक करके इस प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए पूरे संसाधनों को जुटाया है। फिलहाल, इलाके में और किसी बड़े खतरे की सूचना नहीं है, लेकिन ग्लेशियर से जुड़ी घटनाओं को लेकर विशेषज्ञों ने पहले ही चेतावनी दी है कि भविष्य में इस तरह की घटनाएं और भी बढ़ सकती हैं।इस घटना के बाद, उत्तराखंड सरकार और केंद्र सरकार दोनों ने प्रभावित क्षेत्र में बचाव और पुनर्निर्माण कार्यों के लिए त्वरित सहायता भेजने का आश्वासन दिया है। यह घटना एक बार फिर यह दर्शाती है कि उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्रों में प्रकृति के साथ काम करना और इन संवेदनशील इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करना कितना महत्वपूर्ण है।अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि ग्लेशियर का टूटना किस कारण से हुआ, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और लगातार बढ़ती ठंडक के कारण ग्लेशियरों के टूटने की घटनाएं बढ़ सकती हैं।