
भारत और श्रीलंका के संबंधों में एक अहम मोड़ तब आया, जब श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने एक बड़ा बयान दिया। उन्होंने भारत के खिलाफ किसी भी प्रकार की नकारात्मक गतिविधि को बर्दाश्त न करने की कड़ी चेतावनी दी। यह बयान विशेष रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि राजपक्षे ने बिना नाम लिए चीन को एक स्पष्ट संदेश दिया कि श्रीलंका अपनी विदेशी नीति में किसी भी बाहरी दबाव को नहीं स्वीकार करेगा और वह भारत के साथ अपने रिश्तों को मजबूत बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।यह घटनाक्रम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और श्रीलंकाई राष्ट्रपति के बीच द्विपक्षीय बातचीत के दौरान हुआ। दोनों नेताओं ने विभिन्न क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की, लेकिन इस दौरान श्रीलंकाई राष्ट्रपति के बयान ने सुर्खियां बटोरीं। उन्होंने कहा, “हम भारत के खिलाफ किसी भी प्रकार के नकारात्मक गतिविधि को कभी भी सहन नहीं करेंगे। हमारी नीति हमेशा मित्रता और सहयोग की रही है, और हम अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता को किसी बाहरी दबाव से प्रभावित नहीं होने देंगे।”यह बयान तब आया है जब श्रीलंका ने हाल के वर्षों में चीन के साथ अपनी मजबूत व्यापारिक और सामरिक साझेदारी को बढ़ावा दिया है। चीन ने श्रीलंका में बुनियादी ढांचे के विकास और निवेश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इसके साथ ही, चीन की बढ़ती उपस्थिति ने भारत के लिए कुछ चिंता का कारण बना दिया था। श्रीलंका के राष्ट्रपति का यह बयान भारतीय मीडिया और नीति-निर्माताओं के बीच काफी महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बन गया, क्योंकि यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि श्रीलंका अपनी नीति में संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, विशेष रूप से भारत और चीन के बीच बढ़ते प्रभाव के बीच।राजपक्षे का बयान यह भी संकेत देता है कि श्रीलंका ने भारत के साथ अपने रणनीतिक और ऐतिहासिक संबंधों को महत्व देना जारी रखा है, जबकि चीन के साथ भी मजबूत आर्थिक और व्यावसायिक संबंधों को बनाए रखने का प्रयास कर रहा है। यह बयान भारत के प्रति श्रीलंका के समर्पण और विश्वास को उजागर करता है और साथ ही यह भी दिखाता है कि वह किसी भी प्रकार के विदेशी दबाव के खिलाफ अपनी स्वतंत्र नीति को बनाए रखना चाहता है।इसके अलावा, इस मुलाकात के दौरान दोनों देशों के नेताओं ने आपसी संबंधों को और भी मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा की। विशेष रूप से आर्थिक सहयोग, सुरक्षा, और समुद्री मामलों में दोनों देशों के बीच बढ़ते सहयोग पर जोर दिया गया। भारत ने श्रीलंका को वादा किया कि वह आगामी वर्षों में श्रीलंका के विकास के लिए और भी अधिक सहयोग करेगा, विशेषकर बुनियादी ढांचे और तकनीकी सहयोग के क्षेत्र में।इस पूरी घटना ने क्षेत्रीय राजनीति में श्रीलंका के महत्व को फिर से रेखांकित किया है, जहां चीन और भारत दोनों के बीच संतुलन बनाए रखने की चुनौती सामने है। श्रीलंकाई राष्ट्रपति का बयान न केवल द्विपक्षीय संबंधों को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि श्रीलंका अपने विदेश नीति के तहत किसी भी प्रकार के बाहरी दबाव से निपटने के लिए तैयार है, खासकर जब बात भारत के हितों की हो।इस घटनाक्रम के बाद, यह देखना होगा कि चीन इस बयान को किस तरह से लेता है और श्रीलंका अपनी विदेश नीति को और कैसे आगे बढ़ाता है, खासकर भारत और चीन के बीच तनावपूर्ण समीकरणों के बीच।