
उत्तर प्रदेश के गढ़ी रामी इलाके में रविवार को क्षत्रिय समाज की ओर से आयोजित “रक्त स्वाभिमान रैली” में पारंपरिक गौरव, सामाजिक एकता और आक्रोश का अद्भुत संगम देखने को मिला। इस रैली का नारा था “एक डंडा, एक झंडा”, लेकिन इस बार हाथों में केवल झंडे नहीं, बल्कि बंदूकें और तलवारें भी थीं, जो समाज की परंपरा, शौर्य और वर्तमान परिस्थितियों को लेकर उसकी गंभीरता और असंतोष का प्रतीक बन गईं। रैली में हजारों की संख्या में क्षत्रिय समुदाय के लोग दूर-दराज से जुटे। पारंपरिक वेशभूषा, सिर पर साफा, कंधों पर बंदूकें और तलवारों के साथ चलती भीड़ का दृश्य किसी वीरता के उत्सव से कम नहीं था। मंच से समाज के नेताओं ने न केवल अपनी आवाज़ बुलंद की, बल्कि सरकार और प्रशासन को भी सीधा संदेश दिया कि “अब क्षत्रिय समाज चुप नहीं बैठेगा”।सभा में वक्ताओं ने कहा कि समय-समय पर क्षत्रिय समाज को निशाना बनाया गया, अपमानित किया गया और जब भी आवाज उठाई गई, उसे कुचलने की कोशिश हुई। वक्ताओं ने यह भी कहा कि समाज अब जाग चुका है और अपने गौरव, परंपरा और सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर शासन-प्रशासन समाज के सवालों को नजरअंदाज करता रहा, तो आने वाले समय में यह आंदोलन और भी उग्र हो सकता है। रैली के दौरान “जय राजपूताना”, “क्षत्रिय एकता जिंदाबाद”, “रक्त नहीं पानी है, हम क्षत्रिय की कहानी है” जैसे नारों की गूंज पूरे इलाके में सुनाई दी। युवाओं में विशेष उत्साह देखा गया। उन्होंने परंपरागत शस्त्रों के साथ वीरता के प्रतीक स्वरूप मार्च किया। कई बुजुर्गों की आंखों में भावुकता थी, जो कहते नजर आए कि आज का दिन वर्षों बाद आया है जब क्षत्रिय समाज इतनी संगठित और साहसी मुद्रा में एकत्र हुआ है। रैली के माध्यम से समाज ने सिर्फ शक्ति प्रदर्शन ही नहीं किया, बल्कि शांति और संविधान के दायरे में रहते हुए अपनी मांगों को सामने रखा। नेताओं ने यह भी कहा कि यह कोई जातिगत या सांप्रदायिक आंदोलन नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व और आत्मसम्मान की लड़ाई है। उन्होंने प्रशासन से मांग की कि क्षत्रिय समाज को निशाना बनाए जाने की घटनाओं की निष्पक्ष जांच की जाए और समाज के युवाओं को झूठे मुकदमों में फंसाने की नीति पर रोक लगे। गढ़ी रामी की धरती पर हुए इस आयोजन ने यह स्पष्ट कर दिया कि क्षत्रिय समाज अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करेगा। रैली शांतिपूर्वक संपन्न हुई, लेकिन इसकी गूंज अब राजनीतिक गलियारों और प्रशासनिक महकमों में भी महसूस की जा रही है। यह महज एक रैली नहीं थी, यह एक संदेश था — कि समाज एक है, जागरूक है और अपने इतिहास, संस्कृति और आत्मसम्मान को लेकर अब और चुप नहीं बैठेगा।