‘उर्दू है अपनी धरती की भाषा, विदेशी नहीं’ – सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उर्दू भाषा को लेकर एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि उर्दू कोई विदेशी भाषा नहीं है, बल्कि यह हमारी अपनी धरती पर उत्पन्न हुई एक भाषा है। यह टिप्पणी उस समय आई जब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक मामला था, जिसमें उर्दू भाषा को लेकर कुछ कानूनी पहलुओं पर सवाल उठाए गए थे।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उर्दू को विदेशी भाषा के रूप में प्रस्तुत करना संविधानिक दृष्टिकोण से सही नहीं है और यह भारतीय भाषाओं के बीच भेदभाव का कारण बन सकता है। अदालत ने स्पष्ट रूप से यह भी कहा कि उर्दू को भारतीय समाज और संस्कृति का हिस्सा माना जाना चाहिए, और यह किसी अन्य विदेशी भाषा की तरह नहीं है, जिसे बाहर से लाया गया हो।कोर्ट ने यह टिप्पणी उस समय की जब कर्नाटका हाईकोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी जा रही थी, जिसमें उर्दू को राज्य की आधिकारिक भाषाओं के रूप में मान्यता नहीं दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटका सरकार से यह सवाल भी किया कि आखिर क्यों उर्दू जैसी प्राचीन और समृद्ध भाषा को भारतीय भाषाओं के खजाने से बाहर रखा गया है।                                               

   अदालत ने यह भी कहा कि भारत की विविधता में उर्दू का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है और यह न केवल भारत के मुस्लिम समुदाय के लिए, बल्कि सभी भारतीयों के लिए एक सांस्कृतिक धरोहर है। उर्दू भाषा का इतिहास हमारे देश के सांस्कृतिक ताने-बाने में गहरे से जुड़ा हुआ है और यह भारतीय समाज में साहित्य, कला, संगीत और कविता की समृद्ध परंपरा का अहम हिस्सा रही है।सुप्रीम कोर्ट के इस बयान के बाद, उर्दू भाषा के प्रोत्साहन के लिए कई संगठनों और भाषा विशेषज्ञों ने स्वागत किया है। उन्होंने इसे भारत की बहुभाषी संस्कृति और विविधता को मान्यता देने की दिशा में एक सकारात्मक कदम बताया। इसके अलावा, कई उर्दू साहित्यकारों और शिक्षाविदों ने इस फैसले को स्वागतयोग्य माना और उम्मीद जताई कि यह निर्णय उर्दू भाषा को और अधिक सम्मान और पहचान दिलाएगा।कई भाषाशास्त्रियों ने भी इस फैसले को महत्त्वपूर्ण बताया और कहा कि इस प्रकार की टिप्पणियां भारतीय भाषाओं को सम्मान देने के लिहाज से बेहद जरूरी हैं, क्योंकि उर्दू, हिंदी, बांग्ला, तमिल, और अन्य भाषाएं भारतीय सभ्यता का अहम हिस्सा हैं।इस निर्णय के बाद कई राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने भारत में भाषाई समानता को लेकर आवाज़ उठाने की योजना बनाई है, और यह मुद्दा आगामी चुनावों में भी एक प्रमुख मुद्दा बन सकता है।

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