
नई दिल्ली: भारत में अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर सख्त रुख अपनाया है। अदालत ने साफ शब्दों में कहा, “हमारा देश कोई धर्मशाला नहीं है, जहां कोई भी आकर बस जाए और अधिकार मांगने लगे।” यह तीखी टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान आई जिसमें अवैध घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठाए गए थे।
क्या है मामला?
सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया कि बड़ी संख्या में विदेशी नागरिक, विशेष रूप से बांग्लादेश और म्यांमार (रोहिंग्या समुदाय) के लोग भारत में अवैध रूप से प्रवेश कर बस चुके हैं। याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि इनकी वजह से न सिर्फ देश की आंतरिक सुरक्षा खतरे में है, बल्कि संसाधनों पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है। याचिका में इन अवैध नागरिकों को चिन्हित कर उन्हें देश से बाहर भेजने की मांग की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा,
“भारत एक संप्रभु देश है, हम हर किसी को यहां आने और बस जाने की छूट नहीं दे सकते। यह न तो व्यावहारिक है और न ही देशहित में। हमारी सीमाएं सुरक्षित होनी चाहिए और कानून का पालन जरूरी है।”
सरकार को दिए निर्देश
अदालत ने केंद्र और संबंधित राज्यों को निर्देश दिया कि वे अवैध घुसपैठियों की पहचान करने, उनकी संख्या का आकलन करने और आवश्यक कदम उठाने में तत्परता दिखाएं। अदालत ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा और स्थानीय जनसंख्या के हितों की रक्षा करना सरकार का संवैधानिक दायित्व है।
क्यों है यह टिप्पणी महत्वपूर्ण?
भारत में रोहिंग्या, बांग्लादेशी और अन्य विदेशी नागरिकों की अवैध घुसपैठ को लेकर लंबे समय से राजनीतिक और सामाजिक बहस चलती आ रही है। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न केवल इस मुद्दे को एक बार फिर केंद्र में ले आई है, बल्कि सरकार को भी कठोर कदम उठाने की चेतावनी के रूप में देखी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट का यह बयान भारत की सीमाओं की सुरक्षा और नागरिक पहचान की अनिवार्यता को रेखांकित करता है। अदालत ने यह साफ कर दिया है कि “अतिथि देवो भवः” की भावना अपनी जगह है, लेकिन जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक संतुलन की हो, तो कठोर निर्णय आवश्यक हो जाते हैं।