
सुप्रीम कोर्ट की हालिया सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) दिपक मिश्रा गवई ने एक महत्वपूर्ण मामला उठाया, जिसमें उन्होंने उच्चतम न्यायालय के पांच बड़े जजों की छुट्टियों में भी लगन से कार्य करने के बावजूद उन पर हो रही आलोचना को लेकर कड़ी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका का सम्मान बनाए रखना हम सभी का फर्ज है, लेकिन फिर भी जब न्यायालय अपने कर्तव्य का निर्वहन करता है और न्याय देने के लिए छुट्टियों में भी काम करता है, तब भी दोष हम पर ही आ जाता है।CJI गवई ने कहा कि न्यायपालिका को बार-बार कटघरे में खड़ा करने का चलन गलत है। न्यायिक अधिकारियों का काम केवल न्याय देना है और वे बिना किसी भेदभाव के अपने फर्ज को निभा रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि पांच जज जिन्होंने छुट्टियों में भी कार्य किया, वे पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने में लगे हुए हैं। इसके बावजूद उनकी मेहनत पर प्रश्न उठाना न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास को कमजोर करने जैसा है।इस अवसर पर उन्होंने यह भी कहा कि न्यायपालिका में लगातार आ रहे आरोप और आलोचनाएं, खासकर बिना पर्याप्त जानकारी के, देश के संवैधानिक तंत्र को नुकसान पहुंचा रही हैं। न्यायाधीशों की छवि को धूमिल करने वाली बातें न्याय व्यवस्था को कमजोर कर सकती हैं, जो कि किसी भी लोकतंत्र के लिए घातक है। इसलिए यह आवश्यक है कि न्यायपालिका के काम को समझा जाए और उनके प्रयासों की सराहना की जाए, न कि उन्हें अनावश्यक रूप से निशाना बनाया जाए।CJI गवई के इस बयान के बाद कोर्ट में मौजूद अन्य न्यायाधीशों और वकीलों ने भी न्यायपालिका के प्रति आ रही आलोचनाओं पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि न्याय व्यवस्था के प्रति लोगों का विश्वास बनाए रखना हर एक न्यायिक अधिकारी की जिम्मेदारी है, लेकिन साथ ही समाज और मीडिया की जिम्मेदारी भी है कि वे निष्पक्षता से न्यायपालिका के काम को देखें।यह मामला तब सामने आया है जब देश के कई हिस्सों में न्यायालयों पर कार्यभार के दबाव के चलते छुट्टियों में भी सुनवाई हो रही है, ताकि मामलों की लंबित सूची को कम किया जा सके और न्याय तक पहुंच सुनिश्चित की जा सके। CJI गवई का यह कदम न्यायपालिका की मजबूती और उसकी गरिमा की रक्षा की दिशा में एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है।