
राजधानी देहरादून में प्रस्तावित रिस्पना-बिंदाल एलिवेटेड रोड परियोजना के चलते एक बड़ी संख्या में स्थानीय निवासियों के सामने अपने आशियानों को खोने का संकट मंडरा रहा है। नगर निगम द्वारा जारी किए गए नोटिसों के अनुसार, इस मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की परिधि में करीब 2600 घर आ रहे हैं, जिन्हें या तो पूरी तरह से हटाया जाएगा या आंशिक रूप से तोड़ा जाएगा | नगर निगम देहरादून ने हाल ही में इन सभी प्रभावित परिवारों को नोटिस भेजकर निर्माणाधीन सड़क की जानकारी देते हुए आगामी कार्रवाई के लिए आगाह किया है। निगम अधिकारियों के अनुसार, यह कदम एलिवेटेड रोड के निर्माण में बाधा बन रहे अवैध या अतिक्रमित निर्माण को हटाने के लिए जरूरी है।
परियोजना का उद्देश्य और महत्व
रिस्पना और बिंदाल नदियों के किनारे बनने वाली यह एलिवेटेड रोड परियोजना शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारू करने और फ्लड ज़ोन में आने वाले क्षेत्रों की जलनिकासी व्यवस्था सुधारने के उद्देश्य से तैयार की गई है। सरकार का दावा है कि इस परियोजना से शहर के लाखों लोगों को लाभ मिलेगा और देहरादून को स्मार्ट सिटी मिशन के तहत एक नया रूप मिलेगा।
स्थानीय निवासियों में असंतोष
हालांकि, प्रभावित क्षेत्रों के निवासियों में भारी असंतोष और चिंता का माहौल है। कई परिवारों ने नगर निगम के नोटिस को अन्यायपूर्ण बताया है और कहा है कि उन्हें न तो पहले से कोई स्पष्ट सूचना दी गई थी और न ही उनके पुनर्वास की कोई योजना बताई गई है।सुधीर भट्ट, जो रिस्पना किनारे अपने परिवार के साथ पिछले 20 वर्षों से रह रहे हैं, कहते हैं, “हमने अपने जीवन की सारी जमा-पूंजी इस घर को बनाने में लगा दी। अब अचानक नोटिस आ गया है कि हमारा घर अवैध है और हटाया जाएगा। हम जाएं तो कहां जाएं?”
निगम का पक्ष
नगर निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यह कार्रवाई नियमानुसार की जा रही है। “हमने संबंधित क्षेत्रों की मैपिंग कर ली है और पूरी प्रक्रिया योजना अनुसार और कोर्ट के आदेशों के अनुरूप की जा रही है। जिन लोगों के पास वैध दस्तावेज़ हैं, उन्हें पुनर्वास नीति के तहत राहत दी जाएगी,” उन्होंने कहा।
पुनर्वास योजना पर सवाल
वहीं, सामाजिक संगठनों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने पुनर्वास योजना की पारदर्शिता पर सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि बिना विकल्प दिए नोटिस जारी करना अमानवीय है और सरकार को पहले प्रभावित परिवारों के पुनर्वास की स्पष्ट योजना सामने रखनी चाहिए।
आगे की कार्रवाई
नगर निगम द्वारा भेजे गए नोटिसों के अनुसार, प्रभावित लोगों को 15 से 30 दिन का समय दिया गया है, जिसके भीतर उन्हें स्पष्टीकरण देना है या स्वयं ही अपने निर्माण को हटाना है। इसके बाद यदि निर्माण नहीं हटाया गया, तो निगम खुद कार्यवाही करेगा। एक ओर जहां सरकार और नगर निगम इस परियोजना को विकास का प्रतीक बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर 2600 परिवारों के उजड़ने का खतरा विकास की इस कीमत पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है। आने वाले दिनों में यदि पारदर्शी और मानवीय तरीके से पुनर्वास की योजना नहीं बनाई गई, तो यह मामला राजनीतिक और सामाजिक विवाद का रूप भी ले सकता है।