
उत्तराखंड में फलों की बागवानी को अब गंभीर खतरा मंडराने लगा है क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से प्रदेश के कई इलाकों में तापमान में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। इसका असर न केवल बागवानी के क्षेत्रफल पर पड़ा है बल्कि फल उत्पादन में भी भारी कमी आई है। कई स्थानों पर बागवानी के लिए उपयुक्त जलवायु और मौसम की स्थिति बिगड़ने से किसान परेशान हैं।
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में तापमान में लगातार वृद्धि हुई है, जिसके कारण फलों के पेड़ों की वृद्धि प्रभावित हो रही है। खासतौर पर सेब, आड़ू, अखरोट और चेरी जैसी फसलों में उत्पादन आधा हो गया है। कई क्षेत्रों में तो बागवानी का क्षेत्रफल भी घट गया है क्योंकि किसान अब इन फलों की खेती छोड़कर अन्य फसलों या व्यवसायों की ओर रुख कर रहे हैं।
यह स्थिति न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर रही है, बल्कि पूरे राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रही है। उत्तराखंड की पहाड़ी इलाकों में बागवानी पर्यटन और स्थानीय रोजगार का बड़ा स्रोत है, जिसे यह संकट सीधे तौर पर प्रभावित कर रहा है।
सरकारी और पर्यावरण विशेषज्ञ इस समस्या को गंभीरता से ले रहे हैं और त्वरित समाधान के लिए उपाय सुझा रहे हैं, जैसे कि जल संरक्षण, नए किस्मों का विकास, और स्थायी खेती के तरीके अपनाना। हालांकि, इन कदमों के प्रभावी परिणाम आने में कुछ समय लग सकता है।
किसान और स्थानीय लोग भी अब जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक सजग हो रहे हैं और अपनी फसल संरक्षण की रणनीतियों में बदलाव ला रहे हैं। इसके बावजूद, ग्लोबल वार्मिंग का खतरा उत्तराखंड की बागवानी और कृषि को एक बड़ा चुनौतीपूर्ण दौर में ले आया है।
राज्य सरकार ने भी इस संकट से निपटने के लिए विशेषज्ञों की टीम बनाई है और किसानों को सहायता देने के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं। इसके साथ ही, बागवानी क्षेत्र को बचाने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं।
उत्तराखंड के फलों की बागवानी की इस स्थिति पर नजर बनाए रखना बेहद जरूरी है, ताकि समय रहते प्रभावी कदम उठाए जा सकें और इस प्राकृतिक धरोहर को बचाया जा सके।