पहाड़ों में पहली बार दिखा सियामीज़ फायरबैक, पक्षीप्रेमियों में खुशी की लहर

उत्तराखंड की सुरम्य वादियों में जैव विविधता से जुड़ी एक अनूठी और रोमांचकारी घटना सामने आई है। पर्यटन नगरी रानीखेत के समीप स्थित बिनसर महादेव मंदिर के पास के घने वन क्षेत्र में पहली बार थाईलैंड का राष्ट्रीय पक्षी ‘सियामीज़ फायरबैक’ (Siamese Fireback) दिखाई दिया है। यह पक्षी सामान्यतः दक्षिण-पूर्वी एशिया के घने, नम और उष्णकटिबंधीय वनों में पाया जाता है, और भारत में यह पहली बार खुले रूप में कैमरे में दर्ज हुआ है। इससे न केवल प्रकृति प्रेमियों और पक्षी विशेषज्ञों में उत्साह की लहर दौड़ गई है, बल्कि स्थानीय जैव विविधता और पर्यावरण संतुलन के लिए यह एक सकारात्मक संकेत भी माना जा रहा है।

📸 कैमरे में कैद हुआ दुर्लभ क्षण

इस आश्चर्यजनक दृश्य को रानीखेत गैस सर्विस के प्रबंधक और प्रकृति प्रेमी सुरेंद्र सिंह जलाल ने अपने कैमरे में कैद किया। उन्होंने बताया कि जब वे बिनसर महादेव मंदिर के पास टहल रहे थे, तो करीब 600 मीटर दूर एक घने जंगल में उन्हें यह अनजाना परंतु रंग-बिरंगा पक्षी दिखाई दिया। शुरू में उन्हें यकीन नहीं हुआ, लेकिन जैसे ही उन्होंने कैमरे में उसका चित्र कैद किया, तो वह दृश्य उनकी जिंदगी का सबसे यादगार पल बन गया।

🐦 सियामीज़ फायरबैक की विशेषताएं

इस पक्षी की पहचान इसकी विशिष्ट सुंदरता से होती है। नर की लंबाई लगभग 75 से 80 सेमी तक होती है जबकि मादा की लंबाई 55 से 60 सेमी के बीच होती है। नर की देह पर धूसर रंग, नीली-काली पूंछ, और चमकीले पीठ वाले पंख होते हैं। जबकि मादा का रंग भूरा होता है और उसकी चोंच लाल व टांगे गहरे लाल रंग की होती हैं। यह पक्षी फल, बीज, कीट, पत्तियां और जड़ें खाता है और आमतौर पर जमीन पर चहल-कदमी करता है।

🧬 प्रजनन और व्यवहार

सियामीज़ फायरबैक का प्रजननकाल मार्च से जून के बीच होता है। इस दौरान नर पक्षी अपने पंख फैलाकर और नृत्य की मुद्रा में मादा को आकर्षित करता है। मादा जमीन के पास घोंसला बनाती है और एक बार में 4 से 6 अंडे देती है। यह पक्षी स्वभाव से काफी सतर्क और शर्मीला होता है।

🌿 पारिस्थितिक महत्त्व

इस पक्षी का उच्च हिमालयी क्षेत्र में दिखना पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। पक्षी विशेषज्ञ राजेश भट्ट (कॉर्बेट नेशनल पार्क, रामनगर) के अनुसार, “सियामीज़ फायरबैक जैसे उष्णकटिबंधीय पक्षी का उत्तराखंड के पर्वतीय वन क्षेत्र में पाया जाना दर्शाता है कि यहां का पारिस्थितिक तंत्र अब भी संतुलित और जैविक रूप से समृद्ध है।”

🛑 संरक्षण की चुनौती

हालांकि यह पक्षी ‘अल्प चिंता’ (Least Concern) की श्रेणी में आता है, फिर भी वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप इसके प्राकृतिक आवास को नुकसान पहुंचा सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की घटनाएं सरकार और वन विभाग के लिए संरक्षण नीतियों को मजबूत करने का अवसर होनी चाहिए।

🌍 स्थानीय पर्यटन और जैव विविधता में वृद्धि की उम्मीद

इस दुर्लभ पक्षी की मौजूदगी से रानीखेत जैसे पर्यटन केंद्रों में इको-टूरिज्म को बढ़ावा मिलने की संभावना है। यदि संरक्षित और सुनियोजित तरीके से इसका प्रचार किया जाए, तो यह क्षेत्र पक्षी प्रेमियों और प्रकृति शोधकर्ताओं के लिए एक नया आकर्षण बन सकता है।

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