
देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड में एक नई और चिंताजनक प्रवृत्ति सामने आई है — 12 से 17 वर्ष के किशोरों में घर से भागने के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है। पुलिस और बाल संरक्षण एजेंसियों की जांच में सामने आया है कि परीक्षा का तनाव, माता-पिता की डांट का डर और प्रेम संबंध इन मामलों के प्रमुख कारण बनकर उभर रहे हैं।
लेकिन अब इन घटनाओं के पीछे एक और गहरी वजह भी सामने आई है — इंटरनेट मीडिया और ऑनलाइन गेमिंग की लत।
उत्तराखंड बाल अधिकारी संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डा. गीता खन्ना ने कहा कि वर्चुअल दुनिया में डूबे किशोर अब वास्तविक जीवन की जिम्मेदारियों से भागने लगे हैं। उन्होंने इस बढ़ती समस्या को “साइलेंट सोशल क्राइसिस” बताते हुए चेताया कि अगर अब भी परिवार और स्कूल जागरूक नहीं हुए तो आने वाले वर्षों में स्थिति और भयावह हो सकती है।
डा. खन्ना ने सभी जनपदों के अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए हैं कि हर महीने की 10 तारीख तक Form-46 रिपोर्ट आयोग को भेजी जाए, ताकि प्रदेश में लापता या भागे हुए बच्चों के मामलों की सटीक मॉनिटरिंग की जा सके।
इसके अलावा उन्होंने यह भी आदेश दिया कि:
- हर जिले में महिला कल्याण विभाग और चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (CWC) की संयुक्त बैठक मासिक रूप से आयोजित की जाए।
- मेलों और कार्यक्रमों में CWC के स्टॉल लगाकर सरकारी योजनाओं और बाल अधिकारों का प्रचार-प्रसार किया जाए।
- पोक्सो पीड़ित बच्चों को समय पर सहायता राशि दी जाए और उनके केस निपटने के बाद भी उनकी काउंसलिंग जारी रखी जाए।
नंदा की चौकी स्थित ICDS सभागार में आयोजित समीक्षा बैठक में बाल कल्याण से जुड़ी सभी प्रमुख संस्थाओं — किशोर न्याय बोर्ड, CWC, और चाइल्ड हेल्पलाइन के अधिकारी मौजूद रहे। बैठक में सचिव डा. शिव कुमार बरनवाल ने कहा कि राज्यभर के प्रमुख स्थलों पर जन-जागरूकता अभियान चलाना अब समय की मांग है।
उन्होंने स्पष्ट किया — “जब तक समाज मिलकर बच्चों को सुनने, समझने और स्वीकार करने की दिशा में नहीं बढ़ेगा, तब तक कोई कानून या योजना भी इन घटनाओं को रोक नहीं पाएगी।”
बैठक में यह भी खुलासा हुआ कि पोक्सो मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है, खासकर उधमसिंह नगर जैसे जिलों में। वहीं एक मामले में, जहां एक बालक की आंख फोड़ दी गई थी, वहां बाल कल्याण समिति की धीमी कार्रवाई पर आयोग ने कड़ी नाराजगी जताई है।
📍 मुख्य संदेश:
उत्तराखंड में किशोरों के “घर छोड़ने” के पीछे सिर्फ तनाव नहीं, बल्कि डिजिटल दुनिया की गिरफ्त भी बड़ी वजह बन चुकी है। अब वक्त है कि माता-पिता, स्कूल और समाज मिलकर इन बच्चों को समझें, न कि सिर्फ डांटें।
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