
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने ऊर्जा निगम के प्रबंध निदेशक को बड़ी राहत देते हुए भ्रष्टाचार के आरोप से जुड़ी जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। इस मामले में याचिकाकर्ता स्वाभिमान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष बाबी पंवार द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता के पास भ्रष्टाचार से संबंधित कोई ठोस प्रमाण हैं, तो वे संबंधित अधिनियम के तहत सक्षम न्यायालय में अपना पक्ष रख सकते हैं।सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि इस याचिका का उद्देश्य जनहित की आड़ लेकर पैसा वसूली करना प्रतीत होता है, जिससे यह गलत दिशा में न्यायालय का समय व्यर्थ कर रही है। खंडपीठ ने भी इस तर्क को स्वीकार करते हुए याचिकाकर्ता को स्पष्ट निर्देश दिया कि वे उचित कानूनी प्रक्रिया अपनाकर भ्रष्टाचार के आरोपों को जांच के लिए संबंधित प्राधिकरण के समक्ष प्रस्तुत करें।इस निर्णय से ऊर्जा निगम के प्रबंध निदेशक की प्रतिष्ठा को काफी हद तक संरक्षण मिला है और भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में स्पष्ट कानूनी प्रक्रिया का महत्व भी दोहराया गया है। अदालत ने यह भी कहा कि बिना ठोस सबूतों के आरोप लगाना केवल न्यायालय के समय की बर्बादी ही नहीं, बल्कि पक्षों की छवि को भी प्रभावित कर सकता है।यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि यह भ्रष्टाचार के मामलों में जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट की व्यावहारिकता और न्यायिक विवेक की झलक प्रस्तुत करता है। खंडपीठ ने साफ तौर पर कहा कि भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच सही मंच पर और उचित प्रक्रिया के तहत होनी चाहिए, जिससे निष्पक्षता और न्याय की रक्षा हो सके।इस प्रकार ऊर्जा निगम के प्रबंध निदेशक को भ्रष्टाचार के आरोप से राहत मिलते हुए याचिका खारिज कर दी गई है और याचिकाकर्ता को निर्देशित किया गया है कि वे अपने अधिकारों और शिकायतों के लिए उचित विधिक मार्ग अपनाएं।