उत्तराखंड की नई पहल: महिला सशक्तिकरण की दिशा में 57 विभागों की संयुक्त रणनीति तैयार

देहरादून। उत्तराखंड सरकार ने महिला सशक्तिकरण को एक नई दिशा देने की ओर बड़ा कदम उठाया है। अब यह ज़िम्मेदारी केवल महिला सशक्तीकरण विभाग या महिला आयोग की नहीं होगी, बल्कि राज्य के करीब 57 विभाग मिलकर इस लक्ष्य को साकार करेंगे। इसके लिए विशेष रूप से एक समग्र राज्य महिला नीति का मसौदा तैयार किया गया है, जो लागू होने के बाद उत्तराखंड को देश का पहला ऐसा राज्य बना देगा जो महिलाओं के चहुंमुखी विकास के लिए सभी विभागों की सामूहिक भागीदारी सुनिश्चित करता है।

नीति का मुख्य उद्देश्य: प्रभावी समन्वय और जेंडर बजट का सही उपयोग

नई महिला नीति का मूल उद्देश्य सभी विभागों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित कर महिला कल्याण की योजनाओं को प्रभावशाली ढंग से लागू करना है। नीति के तहत प्रत्येक विभाग में जेंडर बजट सेल की स्थापना की जा रही है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि सरकार द्वारा निर्धारित 16.6% जेंडर बजट का अधिकतम और सार्थक उपयोग किया जाए।इस नीति के अंतर्गत महिलाओं को उच्च शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, रोजगार के समान अवसर, सामाजिक सुरक्षा और न्याय जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक बेहतर पहुंच दिलाने पर विशेष ज़ोर दिया जाएगा।

नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत किया गया नीति का खाका

हाल ही में नई दिल्ली में केंद्र सरकार द्वारा आयोजित एक परामर्श कार्यक्रम में देश के पांच राज्यों को महिला कल्याण पर अपनी योजनाएं प्रस्तुत करने का अवसर मिला, जिसमें उत्तराखंड ने भी अपनी समेकित महिला नीति की रूपरेखा प्रस्तुत की। महिला सशक्तीकरण विभाग की टीम ने बताया कि ग्रामीण और सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों की महिलाओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना, लड़कियों की शिक्षा में भागीदारी बढ़ाना, सुरक्षित माहौल बनाना, और स्वास्थ्य सुविधाएं व रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना इस नीति के अहम स्तंभ होंगे।

महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा और न्याय की गारंटी

राज्य महिला नीति में यह भी सुनिश्चित किया गया है कि महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा, घरेलू हिंसा से बचाव, न्यायिक सहायता और आत्मनिर्भरता के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए जाएं। राज्य सरकार इसे एक समावेशी और क्रियाशील विकास मॉडल के रूप में पूरे देश के सामने प्रस्तुत करने की तैयारी में है।


पंचायत चुनावों में आरक्षण पर संकट बरकरार, हो सकती है दोबारा प्रक्रिया

उत्तराखंड की पंचायत राजनीति में भी हलचल बनी हुई है। गजट अधिसूचना के बिना आरक्षण लागू करने के फैसले को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। जानकारों का कहना है कि भले ही हाईकोर्ट चुनाव पर लगी रोक हटा ले, फिर भी शासन को आरक्षण प्रक्रिया को नए सिरे से लागू करना पड़ सकता है।राज्य के विभिन्न जिलों में तीन हजार से अधिक आपत्तियां आरक्षण व्यवस्था पर दर्ज हो चुकी हैं। इन आपत्तियों के निस्तारण को लेकर प्रशासन पर गंभीर लापरवाही के आरोप लगे हैं। आरोप यह भी है कि अधिकतर आपत्तियों का विधिवत समाधान नहीं किया गया, जिससे जनता के बीच असंतोष बढ़ रहा है।


नज़र अब हाईकोर्ट के फैसले पर, महिला नीति से जुड़े क्रियान्वयन पर निगरानी

जहां एक ओर महिला नीति के माध्यम से उत्तराखंड राष्ट्रीय आदर्श बनने की ओर अग्रसर है, वहीं पंचायत चुनावों को लेकर शासन की रणनीति और पारदर्शिता पर अब भी कई सवाल खड़े हैं। एक ओर महिला सशक्तीकरण के लिए विभागीय सहयोग और योजनाएं गढ़ी जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर लोकतांत्रिक ढांचे में आरक्षण को लेकर अव्यवस्था शासन के सामने एक गंभीर चुनौती बनी हुई है।


यदि सरकार महिला नीति को उसी संकल्प और क्रियान्वयन के साथ लागू करती है जैसा उसका खाका प्रस्तुत किया गया है, तो यह नीति राज्य की महिलाओं के जीवन में ऐतिहासिक बदलाव ला सकती है। साथ ही पंचायत चुनावों में पारदर्शिता और न्यायिक निर्देशों का पालन कर शासन भरोसा बहाल कर सकता है।

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