
भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों पुराना सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है। हाल ही में पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी द्वारा दिए गए युद्ध जैसे बयान पर भारत ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। भारत के केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल ने स्पष्ट कहा कि, “यह फैसला भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है। संधि स्थगित होने के बारे में फिलहाल कोई अपडेट नहीं है, लेकिन जो भी निर्णय लिया जाएगा, वह भारत के हित में ही होगा। हम झूठी धमकियों से डरने वाले नहीं हैं।”
बिलावल भुट्टो का विवादित बयान
दरअसल, बिलावल भुट्टो ने हाल ही में बयान दिया था कि अगर भारत, सिंधु जल संधि के तहत पाकिस्तान को उसका ‘उचित हिस्सा’ देने से इनकार करता है, तो उनका देश युद्ध की ओर बढ़ेगा। इस गैर-जिम्मेदाराना बयान ने पाकिस्तान की कूटनीतिक अक्षमता और हताशा को एक बार फिर उजागर कर दिया है।
भारत की दो-टूक: सिंधु संधि अब बाध्यकारी नहीं
इस पूरे घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला है, जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई थी। इस हमले के बाद भारत सरकार ने 1960 के ऐतिहासिक सिंधु जल समझौते को स्थगित करने का फैसला लिया। गृह मंत्री अमित शाह ने कुछ दिनों पहले स्पष्ट रूप से कहा कि यह समझौता अब कभी बहाल नहीं किया जाएगा।भारत का यह निर्णय पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि इस समझौते के तहत उसे हर साल सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों के बहाव का एक बड़ा हिस्सा मुफ्त में मिलता था। भारत अब इस समझौते से बाहर होकर, सिंधु नदी पर बांध बना सकता है और उसका पानी रोक सकता है, जिससे पाकिस्तान की जल-आधारित कृषि और बिजली उत्पादन पर गंभीर असर पड़ेगा।
संधि की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को कराची में हस्ताक्षरित हुई थी। यह समझौता भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान के बीच हुआ था। विश्व बैंक की मध्यस्थता में नौ वर्षों की बातचीत के बाद यह समझौता बना था।
इस संधि के अंतर्गत सिंधु नदी बेसिन की छह नदियों को दो भागों में बांटा गया:
- पूर्वी नदियां – ब्यास, रावी, सतलुज – का उपयोग भारत को दिया गया।
- पश्चिमी नदियां – सिंधु, झेलम, चिनाब – पर नियंत्रण पाकिस्तान को मिला, लेकिन भारत को इन पर परियोजनाएं संचालित करने की अनुमति थी।
भारत की नई नीति: आत्मनिर्भरता और सख्त कूटनीति
भारत ने लंबे समय तक इस संधि का सम्मान किया और इसकी सभी शर्तों का पालन किया, जबकि पाकिस्तान की ओर से लगातार आतंकवाद को बढ़ावा दिया गया। अब भारत ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह ‘एकतरफा शांति’ के सिद्धांत पर आगे नहीं चलेगा। पाकिस्तान को दी जाने वाली मुफ्त जल-सुविधाएं अब उसके आतंक के समर्थन का उत्तर नहीं हो सकतीं। सिंधु जल संधि को लेकर पाकिस्तान की राजनीति में उबाल आना स्वाभाविक है, लेकिन भारत का रुख स्पष्ट और दृढ़ है। अब जब भारत सरकार ने इस समझौते को स्थगित कर दिया है, तो आने वाले वर्षों में पानी को लेकर पाकिस्तान पर बड़ा संकट मंडरा सकता है। केंद्रीय मंत्री सी.आर. पाटिल का बयान – ‘हम झूठी धमकियों से नहीं डरते’ – भारत की वर्तमान कूटनीति और आत्मबल को दर्शाता है।