
जब भी भारतीय टेलीविजन के सबसे प्रतिष्ठित धारावाहिकों की बात होती है, तो रामानंद सागर की ‘रामायण’ का नाम सबसे ऊपर आता है। 25 जनवरी 1987 से 31 जुलाई 1988 तक दूरदर्शन पर प्रसारित हुए इस पौराणिक सीरियल ने न केवल धार्मिक भावनाओं को सजीव किया, बल्कि हर किरदार को लोगों के दिलों में बसा दिया। लॉकडाउन के दौरान जब यह शो दोबारा टेलीविजन पर आया, तब भी इसे वैसा ही प्यार और सम्मान मिला जैसा पहले दौर में मिला था।रामायण के हनुमान बने अभिनेता दारा सिंह को उस समय नायक नहीं, बल्कि भक्तों ने अवतार माना। उनका अभिनय इतना सजीव था कि लोगों ने उन्हें असल में हनुमानजी का रूप मान लिया था। लेकिन इस आस्था और आदर के पीछे उनकी सच्ची तपस्या और श्रद्धा छिपी हुई थी।शूटिंग के दौरान दारा सिंह 8 से 9 घंटे तक कुछ नहीं खाते थे। नाश्ता, चाय या कोई भी पेय पदार्थ तक नहीं लेते थे। इसकी वजह केवल अभिनय नहीं, बल्कि हनुमान जी की मर्यादा और पवित्रता का सम्मान था। वह मानते थे कि जब तक वे हनुमान का रूप धारण किए हुए हैं, तब तक उन्हें किसी भी प्रकार का भोग नहीं लगाना चाहिए। यह उनका निजी नियम था, जिसे उन्होंने पूरी निष्ठा से निभाया।उनकी यह श्रद्धा सिर्फ अभिनय तक सीमित नहीं थी। शूटिंग के दौरान गर्मी, भारी मेकअप, घंटों तक एक ही पोशाक में रहना और लंबे डायलॉग—इन सबके बीच उन्होंने कभी किसी प्रकार की असुविधा की शिकायत नहीं की। उस समय तकनीक भी सीमित थी, तो हर सीन को सजीव बनाने के लिए कलाकारों को अपनी ऊर्जा और आत्मा झोंकनी पड़ती थी।रामायण के निर्माता रामानंद सागर भी दारा सिंह की भक्ति और समर्पण से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने कहा था—“हमने हनुमान को ढूंढ़ा नहीं, वह हमारे पास स्वयं आ गए।”आज भी जब रामायण की चर्चा होती है, तो दारा सिंह का हनुमान बनना सिर्फ अभिनय नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव के रूप में याद किया जाता है।