
बेंगलुरु, 12 जुलाई 2025 – कर्नाटक की राजनीति एक बार फिर चर्चा में है, और इस बार वजह है मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच कथित सत्ता को लेकर खींचतान। हाल ही में बैंगलोर एडवोकेट्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित केम्पेगौड़ा जयंती कार्यक्रम के दौरान डीके शिवकुमार द्वारा दी गई एक टिप्पणी ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है।कार्यक्रम में उपस्थित वकीलों की ओर इशारा करते हुए डीके शिवकुमार ने कहा –“मैं देख रहा हूं कि कई वकील खाली कुर्सियों के बाद भी नहीं बैठ रहे हैं। कुर्सी पाना आसान नहीं है। जब आपको मौका मिले, तो बैठ जाना चाहिए और इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।”उनकी इस बात पर सभा में ठहाके जरूर लगे, लेकिन यह बयान राजनीतिक संदर्भ में गहरी सियासी संकेतों से भरा हुआ माना जा रहा है, खासकर तब जब कांग्रेस के भीतर मुख्यमंत्री पद को लेकर अंदरूनी मतभेद की खबरें तूल पकड़ रही हैं।
‘जब भी मौका मिले, पूरा फायदा उठाएं’: सत्ता को लेकर सीधा संदेश?
अपने भाषण में शिवकुमार ने आगे कहा,“आपमें से कई स्वभाव से ही त्यागी हैं, लेकिन जब मौका मिले तो उसका लाभ उठाना चाहिए। इतनी शानदार इमारतें और कुर्सियां बनाई गई हैं, उन्हें खाली क्यों छोड़ना?”राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान केवल मंच की कुर्सियों तक सीमित नहीं है, बल्कि सत्ता की कुर्सी को लेकर एक स्पष्ट संकेत है — कि जब नेतृत्व का मौका मिले, तो उसे छोड़ा नहीं जाना चाहिए। यह बयान तब आया है जब अफवाहें हैं कि कांग्रेस आलाकमान के साथ सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच ढाई-ढाई साल के सत्ता साझेदारी का समझौता हुआ था।
सिद्धारमैया ने किया स्पष्ट: ‘मैं कार्यकाल पूरा करूंगा’
हालांकि, इन सभी कयासों पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने खुद विराम लगाने की कोशिश की है। उन्होंने 10 जुलाई को बयान जारी कर कहा कि:“नेतृत्व का सवाल अब आलाकमान के पास नहीं है, इसे सुलझा लिया गया है। मुझे कांग्रेस आलाकमान से पूरा समर्थन मिल रहा है। अगर ऐसा नहीं होता तो मैं अपने पद पर नहीं बना रहता।”इस बयान से यह स्पष्ट संकेत गया है कि सिद्धारमैया मुख्यमंत्री पद से हटने को तैयार नहीं हैं और 2028 तक पूरा कार्यकाल करने का इरादा रखते हैं।
क्या कांग्रेस में सब कुछ सही है?
हालांकि कांग्रेस पार्टी ने अब तक किसी भी तरह के ‘पावर-शेयरिंग फॉर्मूले’ की न तो पुष्टि की है और न ही खंडन, लेकिन समय-समय पर डीके शिवकुमार के बयानों से यह सवाल ज़रूर खड़ा हो जाता है कि क्या कांग्रेस नेतृत्व में वाकई आंतरिक संघर्ष चल रहा है?डीके शिवकुमार, जो खुद एक जनाधार वाले कद्दावर नेता हैं और कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं, ने लगातार यह जताया है कि वह राज्य की सत्ता में अहम भूमिका चाहते हैं। वहीं, सिद्धारमैया कांग्रेस के अनुभवी और स्थायी चेहरे हैं जिन्हें वरिष्ठ नेतृत्व का समर्थन प्राप्त है।
निष्कर्ष: आने वाले दिन अहम
इस पूरे घटनाक्रम ने यह दिखा दिया है कि कर्नाटक कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर मतभेद खुलकर सामने आने लगे हैं, भले ही पार्टी इसे ‘अंदरूनी लोकतंत्र’ बता कर टालने की कोशिश करे। डीके शिवकुमार की ‘कुर्सी’ वाली टिप्पणी ने राजनीतिक गलियारों में नई बहस छेड़ दी है कि क्या सत्ता परिवर्तन की पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है, या यह सिर्फ राजनीतिक दबाव की रणनीति है?अब देखना यह होगा कि क्या यह सिर्फ एक भावनात्मक प्रतिक्रिया है या फिर आने वाले दिनों में कर्नाटक की राजनीति में कोई बड़ा उलटफेर देखने को मिलेगा।