भूकंप की आशंका से सतर्क उत्तराखंड: वैज्ञानिकों ने दून में की विशेष बैठक, संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान शुरू

उत्तराखंड सहित सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में आने वाले समय में एक बड़े भूकंप की आशंका जताई जा रही है। यह कोई सामान्य भविष्यवाणी नहीं, बल्कि देश के वरिष्ठ भूवैज्ञानिकों द्वारा किए गए गंभीर अध्ययन पर आधारित चेतावनी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालय क्षेत्र में निरंतर प्लेटों के आपसी घर्षण के कारण भूगर्भीय ऊर्जा एकत्र हो रही है, जो किसी भी समय 7.0 या उससे अधिक तीव्रता के भूकंप का कारण बन सकती है।इस गंभीर विषय पर चर्चा के लिए जून 2025 में देशभर के प्रमुख भू वैज्ञानिक देहरादून में एकत्रित हुए। इस दौरान वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी में “Understanding Himalayan Earthquakes” विषय पर एक विशेष कार्यशाला आयोजित की गई, जबकि भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (FRI) में “Earthquake Risk Assessment” पर विस्तृत चर्चा की गई। दोनों ही बैठकों में एक साझा निष्कर्ष यह रहा कि उत्तराखंड जैसे उच्च भूकंपीय संवेदनशील राज्य में निकट भविष्य में बड़ा भूकंप आ सकता है।

क्यों चिंताजनक है उत्तराखंड?

उत्तराखंड भूकंपीय जोन 4 और 5 में आता है, जो इसे देश के सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्रों में शामिल करता है। 1991 में उत्तरकाशी (7.0 तीव्रता) और 1999 में चमोली (6.8 तीव्रता) में बड़े भूकंप आ चुके हैं। उसके बाद से कोई बड़ा झटका नहीं आया है, जिससे अब भूगर्भीय ऊर्जा का संचय लगातार हो रहा है।नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 6 महीनों में उत्तराखंड में 22 बार छोटे झटके (1.8 से 3.6 तीव्रता) महसूस किए गए हैं, जिनमें चमोली, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी और बागेश्वर सर्वाधिक प्रभावित रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह भूगर्भीय हलचलें एक बड़े भूकंप के पूर्व संकेत हो सकती हैं।

भूकंप पूर्वानुमान क्यों कठिन है?

भूकंप के तीन पहलुओं — कब, कहां और कितनी तीव्रता का — का सटीक पूर्वानुमान करना आज भी विज्ञान के लिए सबसे कठिन कार्यों में से एक है। वैज्ञानिक यह तो निर्धारित कर सकते हैं कि किस क्षेत्र में भूकंप आ सकता है, लेकिन यह नहीं कह सकते कि वह कब और कितनी तीव्रता से आएगा।इसी कारण देहरादून समेत उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में दो अत्याधुनिक GPS सिस्टम लगाए गए हैं, जिनसे यह जानने का प्रयास किया जा रहा है कि किस क्षेत्र में सर्वाधिक ऊर्जा एकत्र हो रही है। हालाँकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इस दिशा में और अधिक GPS स्टेशनों की आवश्यकता है।

वैज्ञानिकों की राय और विश्लेषण

वाडिया संस्थान के निदेशक डॉ. विनीत गहलोत के अनुसार, “उत्तराखंड में भूगर्भीय प्लेटों की गति धीमी है और कई स्थानों पर ‘लॉक्ड’ स्थिति में हैं, जिससे वहां ऊर्जा एकत्र होती जा रही है।” उन्होंने बताया कि इसी प्रकार की परिस्थितियों के चलते नेपाल में 2015 में विनाशकारी भूकंप आया था।सीएसआईआर बेंगलूरू के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. इम्तियाज परवेज का कहना है कि “मध्य हिमालय और पूर्वोत्तर हिमालय में भूगर्भीय ऊर्जा का जमाव अधिक है। यह कब और कैसे बाहर निकलेगी, यह कहना असंभव है।”आपदा सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि “राज्य के 169 स्थानों पर सेंसर लगाए गए हैं जो 5.0 तीव्रता से अधिक का भूकंप आने के 15-30 सेकंड पहले चेतावनी दे सकते हैं। इसके लिए ‘भूदेव’ एप के माध्यम से मोबाइल पर अलर्ट भी प्राप्त होगा।”

क्या मैदानी इलाकों को ज्यादा खतरा?

वाडिया में आयोजित कार्यशाला में विशेषज्ञों ने यह स्पष्ट किया कि समान तीव्रता के भूकंप में मैदानी क्षेत्रों में नुकसान की आशंका अधिक होती है, क्योंकि वहां की भूमि संरचना अपेक्षाकृत कमजोर होती है। बड़े भूकंप अक्सर पृथ्वी की सतह से 10 किलोमीटर गहराई में आते हैं और यही उन्हें अधिक विनाशकारी बनाता है।

देहरादून की भूमि पर विशेष अध्ययन

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून भी इस खतरे की जद में है। केंद्र सरकार ने देहरादून को उन संवेदनशील शहरों की सूची में शामिल किया है, जिन पर CSIR बेंगलूरू द्वारा विशेष अध्ययन किया जाएगा। इसमें यह देखा जाएगा कि देहरादून की ज़मीन किन चट्टानों से बनी है, उसकी मोटाई कितनी है और कितनी मजबूती रखती है। पहले भी वाडिया और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा माइक्रोज़ोनेशन अध्ययन किया जा चुका है, परंतु इस बार अध्ययन और अधिक वैज्ञानिक तरीके से होगा। उत्तराखंड और संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र के लिए यह चेतावनी एक अलार्म है। जिस तरह से वैज्ञानिक और संस्थान लगातार अध्ययन कर रहे हैं, वह यह दर्शाता है कि खतरा वास्तविक है और समय रहते तैयारी आवश्यक है। अब जरूरत है कि सरकार, प्रशासन और आम जनता इस खतरे को गंभीरता से लेते हुए भूकंप सुरक्षा उपायों को अपनाएं और आपदा प्रबंधन की दिशा में सक्रिय कदम उठाएं।

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