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"जब जागरूकता ही नहीं, तो इलाज कैसे? ग्रामीण महिलाओं के बीच कैंसर को लेकर चौंकाने वाली अनभिज्ञता" - The Indian Exposure

“जब जागरूकता ही नहीं, तो इलाज कैसे? ग्रामीण महिलाओं के बीच कैंसर को लेकर चौंकाने वाली अनभिज्ञता”

सरकार भले ही कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों से बचाव के लिए योजनाएं चला रही हो, लेकिन धरातल की हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। उत्तराखंड के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को न केवल कैंसर जैसी बीमारियों के बारे में जानकारी नहीं है, बल्कि वे स्तन कैंसर और सर्वाइकल कैंसर (बच्चेदानी के मुंह का कैंसर) जैसे रोगों के नाम तक से अनभिज्ञ हैं। यह चौंकाने वाले तथ्य एम्स ऋषिकेश के चिकित्सकों द्वारा किए गए एक विस्तृत शोध में सामने आए हैं।इस अध्ययन को अमेरिका के प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल ‘कैंसर कॉजेज एंड कंट्रोल’ में मई 2025 में प्रकाशित किया गया है। यह शोध यूकास्ट (उत्तराखंड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद) के सहयोग से किया गया, जिसमें एम्स ऋषिकेश के डॉक्टरों ने पौड़ी जनपद के चार दूरस्थ विकासखंडों – नैनीडांडा, रिखणीखाल, जयहरीखाल और पोखड़ा की 589 ग्रामीण महिलाओं को शामिल किया।

तीन साल चला सर्वे, खुली जागरूकता की पोल

जनवरी 2022 से दिसंबर 2023 तक चले इस सर्वे में 18 वर्ष की किशोरी से लेकर 65 वर्ष की महिलाओं तक को शामिल किया गया। एम्स के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. दीपक सुंद्रियाल के अनुसार, सर्वे में यह बात सामने आई कि 38% महिलाएं स्तन कैंसर जैसी किसी भी बीमारी से पूरी तरह अनजान थीं। इससे भी चिंताजनक स्थिति सर्वाइकल कैंसर को लेकर पाई गई, जहां 79% महिलाएं इस बीमारी का नाम तक नहीं जानती थीं।

जिन महिलाओं को इन बीमारियों के बारे में कुछ जानकारी थी भी, उनमें से भी 14 से 50 फीसदी तक महिलाएं इन बीमारियों के प्राथमिक लक्षणों की पहचान नहीं कर सकीं।

सिर्फ 6.5% महिलाओं को ही है टीके की जानकारी

सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए लगाए जाने वाले टीके (HPV वैक्सीन) के बारे में सिर्फ 6.5% महिलाओं को ही जानकारी थी, जो एक बेहद चिंताजनक स्थिति को दर्शाता है। यह आंकड़ा इस ओर स्पष्ट इशारा करता है कि सरकार की योजनाएं और जागरूकता अभियान अभी तक इन क्षेत्रों तक प्रभावी रूप से नहीं पहुंच पाए हैं।

जांच की सुविधा मिले तो महिलाएं हैं तैयार

हालांकि शोध में एक सकारात्मक पहलू भी सामने आया है। 57% महिलाओं ने यह इच्छा जाहिर की कि यदि उन्हें जांच की सुविधा और जानकारी मिले तो वे कैंसर जैसी बीमारी की नियमित जांच करवाने के लिए तैयार हैं। इसका तात्पर्य है कि समस्या सिर्फ जानकारी की कमी की है, न कि महिलाओं की इच्छाशक्ति की।

एम्स शोध टीम के सुझाव

डॉ. दीपक सुंद्रियाल और उनकी शोध टीम ने इस समस्या के समाधान के लिए कुछ अहम सुझाव दिए हैं:

  • ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के कर्मचारियों को इन बीमारियों की पहचान और जांच के लिए प्रशिक्षित किया जाए।
  • आशा कार्यकर्ताओं को विशेष प्रशिक्षण देकर कैंसर जागरूकता और प्रोत्साहन में सक्रिय भूमिका दी जानी चाहिए।
  • गांवों में स्वास्थ्य शिविरों और संवाद कार्यक्रमों का आयोजन कर महिलाओं से प्रत्यक्ष जुड़ाव स्थापित किया जाए।

शोध कार्य में शामिल विशेषज्ञों की टीम

इस शोध कार्य को यूकास्ट के वित्तीय सहयोग से अंजाम दिया गया, जिसमें उत्तराखंड मानव सेवा समिति के अध्यक्ष वी.एन. शर्मा व उनकी टीम ने क्षेत्रीय सहयोग प्रदान किया। शोध टीम में एम्स ऋषिकेश से डॉ. दीपक सुंद्रियाल, डॉ. अमित सहरावत, डॉ. योगेश बहुरूपी, डॉ. शालिनी राजाराम, डॉ. महेंद्र सिंह, डॉ. प्रदीप अग्रवाल, डॉ. स्वीटी गुप्ता और डॉ. प्रीति शामिल रहे।

भारत में कैंसर की भयावह तस्वीर

कैंसर से पीड़ित भारतीय महिलाओं में स्तन कैंसर सबसे अधिक पाया जाने वाला रोग है। भारत में कुल कैंसर मामलों में से 28.8% महिलाएं स्तन कैंसर से पीड़ित हैं, जबकि 10.6% महिलाएं सर्वाइकल कैंसर से ग्रसित हैं। वर्ष 2024 में भारत में कैंसर के 15 लाख 33 हजार नए मामले दर्ज किए गए, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं। यह शोध स्पष्ट रूप से बताता है कि जब तक जागरूकता और सुविधाएं जमीनी स्तर तक नहीं पहुंचेंगी, तब तक सरकारी प्रयासों का पूरा लाभ ग्रामीण महिलाओं तक नहीं पहुंचेगा। अब आवश्यकता है नीति निर्धारकों, स्वास्थ्य संगठनों और समाजसेवियों के मिलकर इस दिशा में ठोस प्रयास करने की।

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