
सावन मास की शुरुआत के साथ ही देशभर में कांवड़ यात्रा का पावन पर्व पूरे उल्लास और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। हर साल की तरह इस बार भी उत्तर भारत के राज्यों – खासकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड – में कांवड़ यात्रा को लेकर जबरदस्त तैयारियां की गई हैं। लाखों श्रद्धालु गंगाजल लेने हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख और अन्य पवित्र स्थलों की ओर पैदल रवाना हो रहे हैं, जिन्हें ‘कांवड़िए’ कहा जाता है।इन श्रद्धालुओं की सुरक्षा, सुविधा और ट्रैफिक नियंत्रण के लिए प्रशासन ने व्यापक व्यवस्था की है। लेकिन इस बार एक नई गाइडलाइन ने सबका ध्यान खींचा है – कांवड़ मार्ग पर दुकानदारों के लिए QR कोड लगाना अनिवार्य किया गया है। प्रशासन का कहना है कि इससे दुकान की पहचान, निगरानी और आपातकालीन स्थिति में त्वरित कार्रवाई में मदद मिलेगी।हालांकि, इस आदेश पर अब सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है। सर्वोच्च अदालत ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सरकारों से स्पष्ट तौर पर पूछा है कि दुकानदारों को QR कोड लगाने के निर्देश क्यों दिए गए हैं? कोर्ट ने यह जानना चाहा कि इस नियम का उद्देश्य क्या है, और यह किन कानूनों या सुरक्षा सिद्धांतों पर आधारित है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस आदेश से कहीं नागरिकों के निजता अधिकार का उल्लंघन तो नहीं हो रहा?
क्या है QR कोड नियम?
कांवड़ मार्ग पर मौजूद दुकानों, ढाबों, मेडिकल स्टोर और अन्य अस्थायी स्टॉल्स को QR कोड युक्त पंजीकरण अनिवार्य करने के लिए कहा गया है। इससे प्रशासन को यह पता चलेगा कि कौन-सी दुकान किस व्यक्ति के नाम पर है, वह दुकान वैध है या नहीं, और किसी भी आपात स्थिति में दुकान संचालक की पहचान आसानी से की जा सके।
प्रशासन का पक्ष
प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि बीते कुछ वर्षों में कांवड़ यात्रा के दौरान असामाजिक तत्वों के छिपकर भीड़ में घुसने की कुछ घटनाएं सामने आई थीं। इस बार हाई लेवल सिक्योरिटी प्लान के तहत यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि पूरे रूट पर मौजूद हर स्थायी-अस्थायी इकाई ट्रैक हो। साथ ही, QR कोड स्कैन करने पर जरूरी जानकारी तुरंत पुलिस कंट्रोल रूम तक पहुंच जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट की चिंता
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की निगरानी व्यवस्था को लेकर प्रशासनिक उद्देश्यों पर सवाल नहीं उठाए हैं, लेकिन यह अवश्य कहा है कि ऐसे कदमों की पारदर्शिता और संवैधानिक वैधता जरूरी है। कोर्ट ने पूछा कि क्या दुकानदारों से इन पंजीकरणों के लिए सहमति ली गई? क्या उनके डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित की गई है? और यह कि क्या यह व्यवस्था केवल कांवड़ यात्रा तक सीमित रहेगी या बाद में भी लागू रहेगी?
आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को एक सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल कर इस QR कोड नीति पर अपना पक्ष स्पष्ट करने को कहा है। अगली सुनवाई में यह तय हो सकता है कि यह व्यवस्था बनेगी या फिर इसे वापस लेना पड़ेगा।