
महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और पूर्व मुख्यमंत्री एवं शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे के बीच हाल ही में हुई मुलाकात ने राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का नया दौर शुरू कर दिया है।
बात तब शुरू हुई जब बुधवार को विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष अंबादास दानवे के विदाई समारोह के दौरान मुख्यमंत्री फडणवीस ने एक मजाकिया लेकिन संकेतपूर्ण टिप्पणी करते हुए उद्धव ठाकरे को सत्ता पक्ष में शामिल होने का प्रस्ताव दे डाला। फडणवीस ने कहा,
“उद्धव जी, 2029 तक मेरी विपक्ष में जाने की कोई संभावना नहीं दिख रही है। अगर आप इस ओर आना चाहें, तो रास्ता निकाला जा सकता है – बस सोचने का तरीका थोड़ा अलग रखना होगा।”
यह बयान सुनकर जहां समारोह में मौजूद लोग मुस्कराए, वहीं राजनीतिक विश्लेषकों और विपक्षी दलों के बीच यह बात एक बड़े ‘सियासी ऑफर’ की तरह गूंज उठी।
इस बयान के महज एक दिन बाद ही, गुरुवार, 17 जुलाई 2025 को, उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फडणवीस की करीब 20 मिनट तक बंद कमरे में मुलाकात हुई। यह मुलाकात विधान परिषद के सभापति राम शिंदे के कार्यालय में हुई, जहां आदित्य ठाकरे भी उपस्थित थे।
इस बैठक ने अटकलों को और हवा दी है कि क्या भाजपा और शिवसेना (यूबीटी) के बीच कोई पुराना गठबंधन फिर से आकार ले सकता है?
गौरतलब है कि वर्ष 2019 में उद्धव ठाकरे ने भाजपा से नाता तोड़कर एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार बनाई थी। लेकिन 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद वह सरकार गिर गई, और फडणवीस-शिंदे की नई सरकार अस्तित्व में आई।
अब जब उद्धव ठाकरे लगातार शिंदे सरकार और भाजपा पर तीखे हमले कर रहे हैं और दूसरी ओर राज ठाकरे के साथ उनके रिश्ते मजबूत हो रहे हैं, तो महाराष्ट्र की राजनीति में नई ध्रुवीकरण की संभावनाएं बनने लगी हैं।
क्या फडणवीस की कोशिश है कि मराठी वोट बैंक को एकजुट करने से पहले ही उद्धव ठाकरे को फिर अपने खेमे में शामिल कर लिया जाए?
या फिर यह केवल एक राजनीतिक ‘चाल’ है ताकि विपक्ष को भ्रमित रखा जा सके?
इस मुलाकात पर अब तक दोनों दलों की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन सियासी पारा जरूर चढ़ गया है।