फिल्म ‘सैयारा’: सादगी में बसी मोहब्बत की कहानी, जो दिल को छू जाती है

कुछ फिल्में होती हैं जो स्क्रीन से उतरकर सीधा दिल में घर कर जाती हैं—बिना किसी जबरदस्त ट्विस्ट के, बिना भारी-भरकम ड्रामा के। मोहित सूरी की निर्देशित और यशराज फिल्म्स की पेशकश ‘सैयारा’ भी ऐसी ही एक फिल्म है। एक सधी हुई इमोशनल लव स्टोरी, जो मोहब्बत के दर्द, उम्मीद और हीलिंग की बारीकियों को बड़े ही सादगी से बयां करती है।

कहानी का ताना-बाना

‘सैयारा’ की कहानी एक टूटे हुए भरोसे और एक नयी शुरुआत के बीच की है। वाणी बत्रा (अनीत पड्डा), एक संवेदनशील और कविताओं की दीवानी लड़की, अपनी शादी के दिन उस व्यक्ति से धोखा खा जाती है जिसे वह प्यार करती थी। इस गहरे आघात के बाद, वह न सिर्फ प्यार से बल्कि अपने शब्दों और लेखन से भी दूर हो जाती है। छह महीने बाद एक मीडिया हाउस में काम शुरू करते हुए, उसकी मुलाकात होती है कृष कपूर (आहान पांडे) से—एक सिंगर बनने की ख्वाहिश रखने वाला, गुस्सैल, लेकिन अंदर से बेहद संवेदनशील लड़का।जब कृष वाणी की एक पुरानी कविता पढ़ता है, तो वह उससे अपने अगले गाने के लिए बोल लिखने का आग्रह करता है। यही पेशेवर रिश्ता धीरे-धीरे एक इमोशनल जुड़ाव में बदल जाता है। दोनों की जिंदगियों में कई अधूरे मोड़ हैं, जो उन्हें एक-दूसरे की तरफ खींचते भी हैं और रोकते भी हैं। फिल्म का मूल सवाल यही है—क्या ये दोनों एक-दूसरे की अधूरी दुनिया को पूरा कर पाएंगे?

अभिनय की बात करें तो…

आहान पांडे ने कृष के रूप में एक परिपक्व प्रदर्शन दिया है। उनकी बॉडी लैंग्वेज और आंखों से झलकता इमोशन, किरदार को गहराई देता है। वहीं, अनीत पड्डा की मासूमियत और भावनात्मक टोन वाणी के किरदार को असाधारण बना देती है। उनका संयमित अभिनय कई दृश्यों में दर्शकों की आंखें नम कर देता है। इन दोनों की जोड़ी में एक नयापन है, एक सच्चाई है—जो आजकल की अधिकतर प्रेम कहानियों में कहीं खो गया है।

निर्देशन और स्क्रीनप्ले

मोहित सूरी, जो अपने इमोशनल स्टोरीटेलिंग के लिए जाने जाते हैं, इस बार भी निराश नहीं करते। हालांकि फिल्म की गति कहीं-कहीं धीमी है और कुछ सीन लंबे लगते हैं, लेकिन उसकी भरपाई इसके भावनात्मक ठहराव और गहराई से हो जाती है। स्क्रीनप्ले में कुछ जगहें प्रेडिक्टेबल जरूर हैं, लेकिन वाणी और कृष के बीच के इमोशनल मोमेंट्स इतने असरदार हैं कि वे उन खामियों को छुपा लेते हैं।

संगीत—फिल्म की आत्मा

फिल्म का टाइटल ट्रैक ‘सैयारा’ दिल को छू जाने वाला है। मिथून, तनिष्क बागची, विशाल मिश्रा और सचेत-परंपरा जैसे म्यूजिक डायरेक्टर्स की मेहनत स्पष्ट सुनाई देती है। बैकग्राउंड स्कोर हर भावनात्मक दृश्य को एक नई परत देता है, जो फिल्म के असर को और बढ़ा देता है।

कमजोर कड़ियां

अगर आप ऐसी फिल्मों के शौकीन हैं जिनमें हर 10 मिनट में एक ट्विस्ट हो, या चौंकाने वाली घटनाएं होती हों—तो ‘सैयारा’ आपको थोड़ी सीधी-सादी लग सकती है। इसकी कहानी का अनुमान लगाना आसान है, और कुछ संवाद दोहराव महसूस कराते हैं। लेकिन फिल्म की सादगी ही इसकी सबसे बड़ी ताकत भी है।

फाइनल वर्डिक्ट: ‘सैयारा’ क्यों देखें?

‘सैयारा’ एक अहसास है—उस अधूरेपन का, जो किसी टूटे दिल में बचा होता है… और उस उम्मीद का, जो किसी नए रिश्ते में पनपती है। यह फिल्म अपने संगीत, इमोशन और एक्टिंग से उन दर्शकों के लिए है, जो रोमांस को महसूस करना जानते हैं। अगर आप ऐसी फिल्मों की तलाश में हैं जो शोर नहीं करतीं लेकिन असर छोड़ जाती हैं—तो ‘सैयारा’ जरूर देखें।

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