
कहते हैं कि रिश्तों को संभालने के लिए समझ, वक्त और बहुत सा धैर्य चाहिए। कभी-कभी हमें खुद से भी समझौते करने पड़ते हैं ताकि हमारे अपने खुश रह सकें। अनुराग बसु की नई फिल्म ‘मेट्रो इन दिनों’ इन्हीं रिश्तों की बारीकियों और उलझनों को बेहद खूबसूरती से सामने लाती है। साल 2007 में आई ‘लाइफ इन अ मेट्रो’ के 18 साल बाद निर्देशक अनुराग बसु एक बार फिर रिश्तों की मेट्रो में सवार होकर लौटे हैं, इस बार एक नए अंदाज और नए किरदारों के साथ।
🌆 कहानी की पटरी पर रिश्तों की यात्रा
फिल्म की कहानी भारत के चार मेट्रो शहरों — मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और बेंगलुरु — में बसे अलग-अलग उम्र और सोच वाले कपल्स की ज़िंदगी से गुजरती है। यह पांच कहानियां हैं, जो रिश्तों की सच्चाई, अकेलेपन, प्यार की कन्फ्यूजन और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन को दिखाती हैं।
- पंकज त्रिपाठी और कोंकणा सेन शर्मा एक शादीशुदा जोड़े के रूप में नजर आते हैं, जिनका रिश्ता वक्त के साथ फीका पड़ गया है। बाहर से सब कुछ ठीक लगता है, लेकिन अंदर बहुत कुछ बिखरा हुआ है।
- नीना गुप्ता और सास्वता चटर्जी 40 साल पुरानी शादी में जी रहे हैं, लेकिन शायद उन्होंने भी समझौते के नाम पर खुद को खो दिया है। एक पुराने कॉलेज री-यूनियन के बहाने नीना के किरदार को फिर से अपनी अधूरी मोहब्बत की यादें लौट आती हैं।
- सारा अली खान और आदित्य रॉय कपूर आज की पीढ़ी के उन नौजवानों की कहानी हैं, जो अपने करियर, जीवनसाथी और खुद के बीच उलझे रहते हैं। सारा की चुमकी जीवन को लेकर बेहद कन्फ्यूज है, वहीं आदित्य का पार्थ थोड़ा गहराई लिए हुए, शांत लेकिन खोया हुआ किरदार है।
- अली फज़ल और फातिमा सना शेख की जोड़ी एक खुशमिजाज कपल की है, जो करियर और पर्सनल लाइफ के बीच जूझते हैं। श्रुति मां बनना चाहती है, लेकिन आकाश अपने पैशन और जॉब के बीच उलझा है। दोनों के बीच प्यार है, लेकिन क्या प्यार काफी है?
- अनुपम खेर फिल्म में शिवानी के पुराने प्रेमी परिमल की भूमिका में हैं। अकेले रहने वाले परिमल की बहू अपनी जिम्मेदारियों के कारण खुद के लिए जिंदगी नहीं जी पाती। यह ट्रैक बहुत ही संवेदनशीलता से लिखा और निभाया गया है।
🎭 अभिनय की परतें
फिल्म की कास्टिंग इसकी सबसे बड़ी ताकत है।
- अनुपम खेर एक बार फिर अपने सधे अभिनय से दिल जीत लेते हैं।
- नीना गुप्ता की सहजता और संवेदनशीलता कहानी को मजबूती देती है।
- कोंकणा सेन शर्मा का किरदार गहराई लिए हुए है, जिसमें वह पूरी तरह फिट बैठती हैं।
- पंकज त्रिपाठी इरफान खान की याद दिलाते हैं, लेकिन अपनी एक अलग छाप भी छोड़ते हैं।
- फातिमा सना शेख ने सीमित स्क्रीन टाइम में असर छोड़ा है और उनके लिए भविष्य में बेहतर स्क्रिप्ट्स की संभावनाएं नजर आती हैं।
- सारा अली खान, हालांकि, इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी हैं। उनके एक्सप्रेशन्स सपाट हैं और इमोशनल सीन में भी वह भावनाओं की गहराई को नहीं पकड़ पातीं।
- आदित्य रॉय कपूर और अली फज़ल दोनों ने अपनी-अपनी भूमिकाएं ईमानदारी से निभाई हैं।
🎬 निर्देशन और सिनेमैटोग्राफी
अनुराग बसु हमेशा से कहानी कहने की एक अनोखी शैली के लिए जाने जाते हैं। ‘मेट्रो इन दिनों’ में भी वह अपने भावनात्मक टोन, कलात्मक कैमरा मूवमेंट्स और वाइड एंगल शॉट्स से दर्शकों को किरदारों की दुनिया में ले जाते हैं। मेट्रो ट्रेन, शहरों की हलचल और उनके किरदारों के अंतर्द्वंद्व को उन्होंने जिस तरह से जोड़ा है, वह बेहद प्रभावशाली है।
🎵 संगीत – फिल्म की आत्मा
फिल्म का संगीत इसकी जान है। अरिजीत सिंह, पैपॉन, और प्रीतम की धुनें हर दृश्य को भावनात्मक बना देती हैं। कई गाने ऐसे हैं जो सिर्फ कहानी नहीं, किरदारों की भावनाएं भी बयां करते हैं। अनुराग ने पहले ‘जग्गा जासूस’ में जैसे संगीत को कहानी का हिस्सा बनाया था, वैसा ही अनुभव इस फिल्म में भी मिलता है।
📉 कमजोर पक्ष
- सारा अली खान की अधूरी परफॉर्मेंस फिल्म की इमोशनल डिलिवरी में बाधा बनती है।
- कई कहानियों को जल्दबाज़ी में खत्म कर दिया गया लगता है।
- कुछ दर्शकों को म्यूजिकल डायलॉग्स और लंबी मोंटाज सीक्वेंस थोड़ी बोझिल लग सकती हैं।
- एडिटिंग थोड़ी और चुस्त हो सकती थी, जिससे कुछ ट्रैक्स और प्रभावी बनते।
✅ क्यों देखें?
‘मेट्रो इन दिनों’ कोई परफेक्ट फिल्म नहीं है, लेकिन यह एक ‘फीलिंग’ है — उन रिश्तों की, जो रोजमर्रा की भीड़ में छूट जाते हैं, उन सवालों की, जो हम खुद से नहीं पूछते, और उन जवाबों की, जो अक्सर दिल से निकलते हैं। यह फिल्म आपको अपने रिश्तों की अहमियत याद दिलाएगी — प्यार, परिवार और खुद की पहचान के बीच झूलते हर इंसान की कहानी है यह फिल्म।